जीवन में सबक सभी मीठे नहीं होते
जो सीखे सारे उपयोगी नहीं होते
उतार चढ़ाव पार करने के बाद
जब अंजाम सामने आये तो
अचरज से भरे नैन देख जाना
मेरा बचपन तो है अनजाना !
मुझे कोई हक़ नहीं जाहिर करने
कोई अनुभव नहीं मेरी बातें कहने
तजुर्बों को यदि इतनी अहमियत
देते तो फिर क्यों बुजुर्गों की
बातों को अहमियत नहीं देते ??
ये दुनिया भी है विचित्र
बचपन में बचपना कहते
उम्र होने पर अनुभव नहीं कहते
बुजुर्गों को दिमाग सठियाना कहते
किसकी बातों को ध्यान से सुनते ?
अपने अपने स्वार्थ में
डूबे ये सब ढूंढते झूठे खोट
क्यों और कैसे सीखें बच्चे
इनसे लिहाज और बुध्दि ?
ये तो अपनो को ही पराया
बनाकर दौड़ते हैं
अपनेपन की आस में !!
आंखों के होते यदि
चाहो देखना अंधे तो
दूर नहीं जाना
हर परिवार में मिल
जाएंगे ऐसे अजूबे !!
No comments:
Post a Comment