जब दादी को बुखार होता
अम्मां बाहर चली जातीं
जब हमें बुखार होता
सिरहाने पर तैनात होतीं
मेरे बाल्य मन में कितने
सवाल उठाती थीं
ये तो कोई ना जानें।
जब दादी भूखी होतीं
अम्मां खीजतीं
और बाबू भूखा हो तब
डिब्बे से खाने की चीजें
अपने आप बाहर आतीं
मेरे छोटे से मन में कितने
सवाल उठाती थीं
ये तो कोई ना जानें।
जब दादी बीमार थीं
अम्मां बेवजह चिल्लातीं
दादी आंसू भी छुपा लेतीं
पापा के नाराज़ होने पर
अम्मां जब रोतीं
मैं दादी का चेहरा देखूं
मेरे अनजान मन के कितने
सवाल उठाती थीं
ये कौन जानें ??
हर मां के मन में दूरी
हो शायद , क्यों? ये ना जानूं।
बचपन छूटा पीछे अब
अम्मां दादी बन चलीं
मन में उठते सवालों का
जवाब ढूंढ़ता मैं
उनका चेहरा देखते ही
समझ जाता हूं।
ये समझ उन्हें क्यों नहीं
विचलित करते सवाल
जान कर अनजान थीं
वही अम्मां , तब जाना
उम्र के दर्द एक ही हैं
सिर्फ इंसान बदलते हैं।
अम्मां बाहर चली जातीं
जब हमें बुखार होता
सिरहाने पर तैनात होतीं
मेरे बाल्य मन में कितने
सवाल उठाती थीं
ये तो कोई ना जानें।
जब दादी भूखी होतीं
अम्मां खीजतीं
और बाबू भूखा हो तब
डिब्बे से खाने की चीजें
अपने आप बाहर आतीं
मेरे छोटे से मन में कितने
सवाल उठाती थीं
ये तो कोई ना जानें।
जब दादी बीमार थीं
अम्मां बेवजह चिल्लातीं
दादी आंसू भी छुपा लेतीं
पापा के नाराज़ होने पर
अम्मां जब रोतीं
मैं दादी का चेहरा देखूं
मेरे अनजान मन के कितने
सवाल उठाती थीं
ये कौन जानें ??
हर मां के मन में दूरी
हो शायद , क्यों? ये ना जानूं।
बचपन छूटा पीछे अब
अम्मां दादी बन चलीं
मन में उठते सवालों का
जवाब ढूंढ़ता मैं
उनका चेहरा देखते ही
समझ जाता हूं।
ये समझ उन्हें क्यों नहीं
विचलित करते सवाल
जान कर अनजान थीं
वही अम्मां , तब जाना
उम्र के दर्द एक ही हैं
सिर्फ इंसान बदलते हैं।
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