Sunday, August 7, 2016

छोटी मां

मन भर आया देख तुझे
देखा था बचपन में
अकेली खड़ी सिसकती
मां से जुदा टूटी सी
तब ही था होश संभाला।

बचपना दूर भाग
समझदारी से लिये
जिम्मेदारियां अपनी
भाई को संभाले वह
बन चली एक छोटी मां।

देखते सभी अचरज से
इस उम्र में उसका रूप
पढी लिखी, समझदार भी
दिन निकल चले तेजी से
बन चली बहना दुल्हन।

अचानक याद आया जैसे
रिश्ता कोई नहीं अब
कैसे छूटे भाई का हाथ ?
वह थी जहान जिसका
बह चले आंसू अनगिनत।

मजबूत बांहों ने थाम
पोंछे अश्रु मुस्कुराते
अब भाई रहेगा अपनी
बहन का बन रक्षक।

बह चले अश्रु अनगिनत
लेकिन आनंद से भरे अश्रु
अब दिल था हल्का और मन
खुश जैसे हवा में उड़ता पंख।





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