Tuesday, March 29, 2016

प्रतिरूप

बचपन तो बचपने में गुजर गया
जो दिल ने चाहा वो मिल गया
ना कोई चाह ना ही कोई गम ,
अगले पड़ाव पर खुद को भूले
सिर्फ परिवार ही था सर आंखों पर ,
आज जब सारे पंछी उड़ चुके
इस बगिया में बैठे अकेले मैं
देखता हूं मेरे संसार के प्रतिरूप !
स्तंभित कुछ और चकित कुछ
सृजन और सृष्टि पर !
कोई शब्द नहीं हैं पास मेरे
कोई चाह नहीं बाकी
सिर्फ है खुशी अपनी छोटी सी
दुनिया के सुन्दर से प्रतिबिंब पर ,
खुश और मुग्ध हो चला हूं अब !


Thursday, March 24, 2016

रिश्ते

छलकी आंखों को तुझे देख
मिला सुकून लेकिन ज़रा सोच ,
क्या जीवन साथी ही होते हैं
सब कुछ ??

चंद सालों में अगर न हो
एक किलकारी तो क्यों
बोझ से लगते यही रिश्ते ??

हर रिश्ते की एक पहचान है
हर रिश्ते की एक मिठास है
गर रख सको कायम
तो ज़िंदगी फिर
क्यों उदास है ??



Tuesday, March 22, 2016

जीवन

जिंदगी के टूटे तार बिखर गए
जिंदगी की लय भी छूट गयी
तेरे नाम कर दी जिंदगी फिर भी
गम है मुझे खुद की पहचान
लुट गयी और मैं
उफ्फ भी न कर सकी !!

कभी तो ज़िंदगी रास आएगी
कभी तो ज़िंदगी शिकवे सुनेगी ,
मुझे भी खुशियों की सौगात मिलेगी
जीते जी शायद कभी पलटकर देखूं
और खुश हो लूं अपनी राह पर !!

Wednesday, March 9, 2016

भूल भुलैया

चेहरा है मुरझाया सा
मन है उत्साह रहित ,
झुलसी आशायें और सपने 
आंखें उदासी भरी ,
जब भी देखूं 
मन भर आता पर ,
दूर से दिखने वाले 
चेहरे की मन की बातें ,
ना जान सकी अब तक !!
जब भी देखा दूर से ही 
समझने की कोशिश नहीं ,
आज समझ आया मन
इक भूल भुलैया ,
और इक धोखा भी
जो हम चाहें वही
दिखाने वाला एक आईना !


Saturday, March 5, 2016

बदलते अर्थ

पलक झपकते दुनिया बदली
बदल चला संसार 
पापा का होना और 
अब ना होना ,
एक सांस के चलते 
कितनी सारी बातों के 
अर्थ बदल जाते हैं ,
आज भी सब कुछ  
वैसा ही तो है
आज भी याद हैं मुझे,
पापा जल्दी आ जाना 
छोटी सी गुड़िया लाना !!
बस मेरी छोटी सी 
दुनिया आबाद थी 
और अब उजड़ चली है !!