उदासी भरी आंखें , कृष काया
उम्मीद से देख मुझे किया
अनुरोध छोटी सी मदद का
उम्र का तकाजा मैं बध्ध हुयी।
थी जरूरत कुछ रूपयों की
संकोच और दया का झोंक ,
किया मैंने आहार का निवेदन
स्वीकृति ने दिया असीम सुख ।
देखी एक तृप्त झलक
आंखों से बह चले अश्रु
क्यों उम्र से थके मन और पांव
मांगे दया की भीख गैरों से ?
सोचने पर मजबूर हो
उदास मैं चली मजबूर सी
सहायता भी तो कितनी मिले
कौन है इतना समर्थ ?
अनजान बने छोड़ रखा है
अपने परिवार से अलग
उम्र का तकाजा भी क्या होगा ?
खाना और आराम
क्या इतना भी नसीब ना हो ?
मन की चिंता यूं ही थी
निकल गए कई महीने
अचानक देखा एक दिन
वही जगह वही कहानी
तो क्या ये तरीका था
जीने की असहाय युक्ति ?
ज़मीर इतना गिर गया ?
शर्म से सिर थामे रही बैठी
असहाय सी झड़ी बह चली
झुर्रियों भरे हाथ थामे
मैंने लिया घर का रूख
दोनों कीआंखों से बहे आंसू
एक तरफ असहाय सीउदासी
दूसरी तरफ दृढ़ संकल्प
दोनों को मिली एक तृप्ति
स्नेह के आदान प्रदान की।
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