Monday, September 28, 2015

Pride

Today ,
Brought a smile of contentment
On recalling how I received the
Bundle of joys with trembling hands
So delicate and fragile !
With thousands clouds of unseen fears
Held close and felt the beats !
My heart thumped and throbbed
A pain but of great joy covered
My whole being with a deep
Love and pride of
Becoming a complete woman
Motherhood !!
A great thing to experience!!


Wednesday, September 23, 2015

याद आता है

याद आता है बचपन में
दौड़ते बादलों का पीछा करना ,
चंदा भी चलता साथ हमारे
बादलों में ढूंढते इठलाते आकार,
चांद भी लगता दोस्त हमारा
तारे मुस्कुराते से लगते ,
अनगिनत तारों को गिनते
न जाने कब सो जाते और
सुबह डिब्बे में बंद जुगनू ढूंढते !
फिर सुनते एक कहानी
जो बिलकुल सच लगती ,
परी आकर हमें मरहम
लगाती, जुगनू को छोड़ती
सबको ढेर सारा प्यार देकर
सुबह गायब हो जाती !
रात जागकर बैठना
परी को देखने की लालसा में ,
निराश हो सो जाना और सुबह
आंखें फैलाकर ढूंढना ,
आज भी याद आता है
बचपन जो दूर बहुत दूर
चला गया हमसे !
आज भी मन में है धरोहर  !

Monday, September 21, 2015

प्यार

आज मौन बैठी सोच रही
हम क्यों हैं ऐसे बेदर्द
गरीब , बूढ़े , अपंग ,
सबसे पेश आते एक तरह !
आज न उम्र न रिश्ते हैं
इज्जत के हकदार
क्यों हम इतने अंधे
बन चले ?
पैसों ने हमें अंधा बना
जानवर से भी बदतर
कर दिया !
आंखों पर एक चश्मा है
समता का !
सिर्फ दिखते हैं
पैसों की चमक वाले
न मां , न बहन , न भाई
रिश्ते ही भूल चुके
हमसे बेहतर हैं वो
जो अकेले ही पैदा होते
कम से कम अपने अकेलेपन
से दूर जा सबसे प्यार
तो जताते हैं !!

Sunday, September 20, 2015

झूठ और सच


रिश्तों को झूठ और सच का
फर्क नहीं मालूम
लेकिन आंखें जानतीं हैं
दिल और जुबां के भेद !
सच्चे रंग और झूठी हंसी
रही सही कसर छूकर
जान लें वरना ,
आंखों के बिना कैसे
रिश्तों की गहराई  
जान लेतें हैं  
सिर्फ चंद लम्हों में  !      

Friday, September 18, 2015

जब भी ये मन

जब भी ये मन पलटता है पन्ने
कुछ न कुछ ढूंढता है
यादों की दुनिया में ,
उदासी की चादर ओढ़े रिश्ते
एक दूसरे से नैन चुराते
अपनी दुनिया में मशगूल !
मुश्किलें जब पास आतीं
खुद ब खुद ढूंढते
रिश्तों की नजदीकियों को
दिल को थोड़ा सुकून देने !
हम चाहे जितना ही
आगे निकलें जिंदगी में
लेकिन रिश्तों से कटना है
जीते जी मरने जैसा !




Thursday, September 3, 2015

एक जमाना हुआ

जमाना  हुआ  मुस्कुराये इन्हें
ओंठों पर सूखी सी  परत
मन मुरझाया सा
वजह अनजानी है पर
दर्द तो पहचाना सा है !

अक्सर ही मिल जाते हैं
आंखों की नमी छिपाते हमें
पराये जो अपने से लगते हैं
शायद उनके दर्द में हम
अपनी झलक पाते हैं !

अंधाधुंध में लगें हैं सब
क्या खोज रहें न जानें
कोई खुशी तो कोई सुख
जाने कहां जा छुपे हैं
दूर बहुत दूर !

रिश्तों में अपनापन
और मन में सच्चा प्यार
है या नहीं पता नहीं
सब परतों में छिप चले हैं
ज़िन्दगी के नकलीपन में !

थके कदम जब पास आयें
तो बढ़कर थामने हाथ नहीं
दूर कहीं बच्चों की
मुस्कान देखने कोई नहीं !

परिवारों का बिखराव कहीं
दूर ले चला है इंसानियत से
बच्चों को बचपन से ,
ज़िन्दगी से दूर हम चल रहे
कहां और क्यों
कोई न जाने !!