Thursday, September 3, 2015

एक जमाना हुआ

जमाना  हुआ  मुस्कुराये इन्हें
ओंठों पर सूखी सी  परत
मन मुरझाया सा
वजह अनजानी है पर
दर्द तो पहचाना सा है !

अक्सर ही मिल जाते हैं
आंखों की नमी छिपाते हमें
पराये जो अपने से लगते हैं
शायद उनके दर्द में हम
अपनी झलक पाते हैं !

अंधाधुंध में लगें हैं सब
क्या खोज रहें न जानें
कोई खुशी तो कोई सुख
जाने कहां जा छुपे हैं
दूर बहुत दूर !

रिश्तों में अपनापन
और मन में सच्चा प्यार
है या नहीं पता नहीं
सब परतों में छिप चले हैं
ज़िन्दगी के नकलीपन में !

थके कदम जब पास आयें
तो बढ़कर थामने हाथ नहीं
दूर कहीं बच्चों की
मुस्कान देखने कोई नहीं !

परिवारों का बिखराव कहीं
दूर ले चला है इंसानियत से
बच्चों को बचपन से ,
ज़िन्दगी से दूर हम चल रहे
कहां और क्यों
कोई न जाने !!










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