Wednesday, September 23, 2015

याद आता है

याद आता है बचपन में
दौड़ते बादलों का पीछा करना ,
चंदा भी चलता साथ हमारे
बादलों में ढूंढते इठलाते आकार,
चांद भी लगता दोस्त हमारा
तारे मुस्कुराते से लगते ,
अनगिनत तारों को गिनते
न जाने कब सो जाते और
सुबह डिब्बे में बंद जुगनू ढूंढते !
फिर सुनते एक कहानी
जो बिलकुल सच लगती ,
परी आकर हमें मरहम
लगाती, जुगनू को छोड़ती
सबको ढेर सारा प्यार देकर
सुबह गायब हो जाती !
रात जागकर बैठना
परी को देखने की लालसा में ,
निराश हो सो जाना और सुबह
आंखें फैलाकर ढूंढना ,
आज भी याद आता है
बचपन जो दूर बहुत दूर
चला गया हमसे !
आज भी मन में है धरोहर  !

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