Monday, September 21, 2015

प्यार

आज मौन बैठी सोच रही
हम क्यों हैं ऐसे बेदर्द
गरीब , बूढ़े , अपंग ,
सबसे पेश आते एक तरह !
आज न उम्र न रिश्ते हैं
इज्जत के हकदार
क्यों हम इतने अंधे
बन चले ?
पैसों ने हमें अंधा बना
जानवर से भी बदतर
कर दिया !
आंखों पर एक चश्मा है
समता का !
सिर्फ दिखते हैं
पैसों की चमक वाले
न मां , न बहन , न भाई
रिश्ते ही भूल चुके
हमसे बेहतर हैं वो
जो अकेले ही पैदा होते
कम से कम अपने अकेलेपन
से दूर जा सबसे प्यार
तो जताते हैं !!

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