आज मौन बैठी सोच रही
हम क्यों हैं ऐसे बेदर्द
गरीब , बूढ़े , अपंग ,
सबसे पेश आते एक तरह !
आज न उम्र न रिश्ते हैं
इज्जत के हकदार
क्यों हम इतने अंधे
बन चले ?
पैसों ने हमें अंधा बना
जानवर से भी बदतर
कर दिया !
आंखों पर एक चश्मा है
समता का !
सिर्फ दिखते हैं
पैसों की चमक वाले
न मां , न बहन , न भाई
रिश्ते ही भूल चुके
हमसे बेहतर हैं वो
जो अकेले ही पैदा होते
कम से कम अपने अकेलेपन
से दूर जा सबसे प्यार
तो जताते हैं !!
हम क्यों हैं ऐसे बेदर्द
गरीब , बूढ़े , अपंग ,
सबसे पेश आते एक तरह !
आज न उम्र न रिश्ते हैं
इज्जत के हकदार
क्यों हम इतने अंधे
बन चले ?
पैसों ने हमें अंधा बना
जानवर से भी बदतर
कर दिया !
आंखों पर एक चश्मा है
समता का !
सिर्फ दिखते हैं
पैसों की चमक वाले
न मां , न बहन , न भाई
रिश्ते ही भूल चुके
हमसे बेहतर हैं वो
जो अकेले ही पैदा होते
कम से कम अपने अकेलेपन
से दूर जा सबसे प्यार
तो जताते हैं !!
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