बचपन तो बचपने में गुजर गया
जो दिल ने चाहा वो मिल गया
ना कोई चाह ना ही कोई गम ,
अगले पड़ाव पर खुद को भूले
सिर्फ परिवार ही था सर आंखों पर ,
आज जब सारे पंछी उड़ चुके
इस बगिया में बैठे अकेले मैं
देखता हूं मेरे संसार के प्रतिरूप !
स्तंभित कुछ और चकित कुछ
सृजन और सृष्टि पर !
कोई शब्द नहीं हैं पास मेरे
कोई चाह नहीं बाकी
सिर्फ है खुशी अपनी छोटी सी
दुनिया के सुन्दर से प्रतिबिंब पर ,
खुश और मुग्ध हो चला हूं अब !
जो दिल ने चाहा वो मिल गया
ना कोई चाह ना ही कोई गम ,
अगले पड़ाव पर खुद को भूले
सिर्फ परिवार ही था सर आंखों पर ,
आज जब सारे पंछी उड़ चुके
इस बगिया में बैठे अकेले मैं
देखता हूं मेरे संसार के प्रतिरूप !
स्तंभित कुछ और चकित कुछ
सृजन और सृष्टि पर !
कोई शब्द नहीं हैं पास मेरे
कोई चाह नहीं बाकी
सिर्फ है खुशी अपनी छोटी सी
दुनिया के सुन्दर से प्रतिबिंब पर ,
खुश और मुग्ध हो चला हूं अब !
Nice!
ReplyDeleteNice!
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