Friday, April 1, 2016

चंद खुश लम्हे

रिश्तों के समंदर में खुद को सहेजे
दिन बने महीने और महीने बने साल
याद जब आयी तो बहने लगे नैन
कब कहां कुछ अलग हो गया
न जान सकी मैं !

बचपन की सरहद कर चुकी पार
अल्हड से बनी मैं जिम्मेदार ,
चंद खुश लम्हे जीना सीख ले
अब तो तुझे जाना समंदर पार
खुशी के मतलब बदलेंगे
और जीवन के मकसद भी !

कल तक जो था जीना अब
लगे एक बेहूदा मज़ाक ,
हर एक पल मुहर लगेगी
जिंदगी भी बनेगी एक भार
ऐसे भी समय आएंगे कि मन
चाहे तोड़ कर भागना उस पार !

पर तूने है जूझना और जीतना
इस पार नहीं जाना है उस पार
कर दिखाना है सबको वो सब
जिसे मन ने सहेजा है बार बार !

सिर्फ औरत होना तो नहीं
कोई दोष कि जीते जी
कर लेना पड़े दफ़न
सपने और खुशियों को
जीना तो है एक संघर्ष
जीत होनी है एक दिन !!

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