Wednesday, April 27, 2016

सुलभ हो चली जिंदगी

जीना सीख ना सकी ऐ दिल
जीना भूल सी चली ऐ दिल
क्यों है तुझे इतना गम
मेरी ज़िंदगी न हो मजबूर

मेरी मजबूरी ने मुझे ऐसा
बदला कि मैं खुद को
भूल चली , मेरी पहचान
भुला चली , परिवार के भार
में दबी खुद को इस तरह
मजबूर , नाराज़ , बेदर्द
कुछ और ना देख सकी

अपने गम से परे भी कुछ
तो होगा मन को भाता
कोई तो होगा मन के भीतर
मेरा अपना कोई तो होगा

इतने नाकाम दिनों के
जाने पर जाना
मेरा भी दिल धड़कता है
किसी को सुनाने के लिए
किसी को  देखने के लिए
ये दिल भी मेरा अब तक
इम्तिहान लेता रहा
मैं नाकाम सी जीती रही

आज मेरी मंज़िल मिली
मेरे मकसद मिले
जीने की एक चाह ,
एक राह जो अपनी थी
आज सुलभ हो चली
जिंदगी मेरी
प्यारी हो चली !!


Sunday, April 17, 2016

बदलते सच !!

मन में हाहाकार मचा
शोख थी अब हो गयी
गंभीर सब समझती
अनजाने अल्हड़ता
दफना चुकी संजीदगी में !!

क्या किसी को थी खबर ?
एक मुखौटे में छिपा गयी
कितने ही अनजाने सच !!
ये सच भी तो बदलते हैं
रिश्तों के तहत !!

मेरे सच झूठ हो जातेअक्सर ,
झूठ तो सरेआम सच हो गए !!
थी ये गुस्ताखी मेरी पर ,
मजबूर सी हो चली थी अब
ना था होश ना किसी का डर !!

सच से क्यों और कैसा डर ?
ना चाहूं और मुखौटे मैं !!
दम घुटने लगा है इस खेल में
सच झूठ और झूठ सच बने ,
कैसे , क्यों मैं गयी बदल ?

मां से रिश्ते थे कमजोर
मैं ही थी कमजोर ?
मन की उथल -पुथल
किये थी परेशान !
कैसे बताऊं मेरी उलझन ?
कौन है मेरा अपना ?

सब थे मेरे अपने लेकिन
मुखौटे से परे सब बेगाने से !
हमें जुड़े रहने का
नाजुक सा रिश्ता तो
तोड़ गई एक सांस
फिर क्यों
इतनी परेशानी ?

मन को झकझोर मैं
चल निकली अलग दिशा में !
जहाँ कोई नकली चेहरा
ना मुझे मजबूर करे
हंसने और रुलाने पर !!
ख़त्म हो चुकी मेरी सरहदें !!




जीवन एक पहेली !!

मां का ना होना ही गहरा हादसा
फिर चला एक अनन्त सिलसिला 
समझने और समझाने का 
रिश्तों को सहज बनाने का ,
बोझ बने रिश्ते अपनाने का 
क्यों ये कशमकश ?
क्यों ये बेहूदे झूठे मुखौटे ?
किससे क्या छुपाएं ?
किससे सब बताएं न जानूं !
क्यों  है मेरा मन विचलित ?
क्यों हैं ये मुखौटे ?




क्या इंसान ने जीना सीख लिया 
जीना ही खिलवाड़ बन गया ?
मेरी समझ ना आये ये सब 
बच्ची जो हूं समझी जाती,
जब आये जिम्मेदारी तब 
अचानक बड़ी बन जाती 
ये भी तो है ना जीना ?

कब मैं सीखूंगी ये सारे 
दांव पेंच जीने के लिए ,
कब झूठ सच और सच झूठ 
बनेंगे सिर्फ मुस्कुराने के लिए ?
जीवन बन गया एक पहेली
कब तक इनके तहत मैं 
दबती रहूंगी मन का गला घोंट ?

सारे रिश्ते नए से लगने लगे 
एक मां के जाने से इतना कुछ 
कैसे मैं लूं स्वीकार ?
मन तू है इन सबसे अनजान ,
मासूमियत से मायूस हो ,
समझ से नाता जोड़
नासमझ बने रहने में ही
भलाई तेरी , आंखें बंद ही
रहने दे अब , न देखना
उस तरफ जो भी है
अंजान बनना है नियति !

न जूझ तेरे मन से
वो तो नहीं आने वाली
फिर क्यों ये शिकन चेहरे पर ?
क्यों ये भार सा मन पर ?
अब हटा कर पर ये सब
सीख ले दुनिया में जीना
कब तक अंतर्मन में संघर्ष ?
जीत हो या हार कर ले
स्वीकार , रिश्तों की
असलियत ही है जीवन ,
तेरी पहचान ,
जान ले  तेरी पहचान और
पहचान ले हर नज़र !!



Saturday, April 2, 2016

मां की गोद

तलाशते थक गए पांव
हो कहां चली आओ न मां
ना अब तरसाओ इस तरह
ढूंढ़ता दर ब दर !

मैंने सुना तुम हो सर्वत्र
फिर क्यों न आ जाती
पास मेरी मां ?
क्या मेरी खता है बता ?

मैं हूं तेरी धड़कन
तेरी सांस , तेरा प्यार
फिर क्यों है ऐसी
तड़पाए मुझे मां ?

जो ना आईं तो मैं
चली आउंगी पास तेरे
जब मेरी आंखें खुलें 
तुम होगी न मेरे पास ?

मां की गोद में
गुजरी रात, मां थी पास
सर पर फेरा हाथ
मैंने होश संभाला
सूरज चुभने सा लगा !

आंखें खुलीं,दिल हल्का
मां का प्यार था साथ
खुशी से आंखों में चमक
मां तू पास मेरे आ जा ना !!

निश्छल प्यार

उन्हें देख आंखें झपकना भूलीं
मन अपनी उदासी और तड़प
दिल की धड़कन तेज हो चलीं
खुशी कई गुना बढ़ गयी
ऐसा क्या है उनमें अनोखा ?

सिर्फ एक निश्छल प्यार
शांत और प्यारी आवाज
खींचे हमें उनकी ओर
क्या है ना जाने अब तक !

दुनिया में अगर कोई ताकत
है सबके ऊपर तो वो है
प्यार, दूसरा कुछ भी नहीं
समझने लगे हमें साल !

कहीं भी हों तड़प जाए मन
उस निश्छल प्यार को
मां दुनिया में तेरी गोद में
है जो सुकून, है कहीं और ?




Friday, April 1, 2016

चंद खुश लम्हे

रिश्तों के समंदर में खुद को सहेजे
दिन बने महीने और महीने बने साल
याद जब आयी तो बहने लगे नैन
कब कहां कुछ अलग हो गया
न जान सकी मैं !

बचपन की सरहद कर चुकी पार
अल्हड से बनी मैं जिम्मेदार ,
चंद खुश लम्हे जीना सीख ले
अब तो तुझे जाना समंदर पार
खुशी के मतलब बदलेंगे
और जीवन के मकसद भी !

कल तक जो था जीना अब
लगे एक बेहूदा मज़ाक ,
हर एक पल मुहर लगेगी
जिंदगी भी बनेगी एक भार
ऐसे भी समय आएंगे कि मन
चाहे तोड़ कर भागना उस पार !

पर तूने है जूझना और जीतना
इस पार नहीं जाना है उस पार
कर दिखाना है सबको वो सब
जिसे मन ने सहेजा है बार बार !

सिर्फ औरत होना तो नहीं
कोई दोष कि जीते जी
कर लेना पड़े दफ़न
सपने और खुशियों को
जीना तो है एक संघर्ष
जीत होनी है एक दिन !!