जीना सीख ना सकी ऐ दिल
जीना भूल सी चली ऐ दिल
क्यों है तुझे इतना गम
मेरी ज़िंदगी न हो मजबूर
मेरी मजबूरी ने मुझे ऐसा
बदला कि मैं खुद को
भूल चली , मेरी पहचान
भुला चली , परिवार के भार
में दबी खुद को इस तरह
मजबूर , नाराज़ , बेदर्द
कुछ और ना देख सकी
अपने गम से परे भी कुछ
तो होगा मन को भाता
कोई तो होगा मन के भीतर
मेरा अपना कोई तो होगा
इतने नाकाम दिनों के
जाने पर जाना
मेरा भी दिल धड़कता है
किसी को सुनाने के लिए
किसी को देखने के लिए
ये दिल भी मेरा अब तक
इम्तिहान लेता रहा
मैं नाकाम सी जीती रही
आज मेरी मंज़िल मिली
मेरे मकसद मिले
जीने की एक चाह ,
एक राह जो अपनी थी
आज सुलभ हो चली
जिंदगी मेरी
प्यारी हो चली !!
जीना भूल सी चली ऐ दिल
क्यों है तुझे इतना गम
मेरी ज़िंदगी न हो मजबूर
मेरी मजबूरी ने मुझे ऐसा
बदला कि मैं खुद को
भूल चली , मेरी पहचान
भुला चली , परिवार के भार
में दबी खुद को इस तरह
मजबूर , नाराज़ , बेदर्द
कुछ और ना देख सकी
अपने गम से परे भी कुछ
तो होगा मन को भाता
कोई तो होगा मन के भीतर
मेरा अपना कोई तो होगा
इतने नाकाम दिनों के
जाने पर जाना
मेरा भी दिल धड़कता है
किसी को सुनाने के लिए
किसी को देखने के लिए
ये दिल भी मेरा अब तक
इम्तिहान लेता रहा
मैं नाकाम सी जीती रही
आज मेरी मंज़िल मिली
मेरे मकसद मिले
जीने की एक चाह ,
एक राह जो अपनी थी
आज सुलभ हो चली
जिंदगी मेरी
प्यारी हो चली !!