मां का ना होना ही गहरा हादसा
फिर चला एक अनन्त सिलसिला
समझने और समझाने का
रिश्तों को सहज बनाने का ,
बोझ बने रिश्ते अपनाने का
क्यों ये कशमकश ?
क्यों ये बेहूदे झूठे मुखौटे ?
किससे क्या छुपाएं ?
किससे सब बताएं न जानूं !
क्यों है मेरा मन विचलित ?
क्यों हैं ये मुखौटे ?
क्या इंसान ने जीना सीख लिया
जीना ही खिलवाड़ बन गया ?
मेरी समझ ना आये ये सब
बच्ची जो हूं समझी जाती,
जब आये जिम्मेदारी तब
अचानक बड़ी बन जाती
ये भी तो है ना जीना ?
कब मैं सीखूंगी ये सारे
दांव पेंच जीने के लिए ,
कब झूठ सच और सच झूठ
बनेंगे सिर्फ मुस्कुराने के लिए ?
जीवन बन गया एक पहेली
कब तक इनके तहत मैं
दबती रहूंगी मन का गला घोंट ?
सारे रिश्ते नए से लगने लगे
एक मां के जाने से इतना कुछ
कैसे मैं लूं स्वीकार ?
मन तू है इन सबसे अनजान ,
मासूमियत से मायूस हो ,
समझ से नाता जोड़
नासमझ बने रहने में ही
भलाई तेरी , आंखें बंद ही
रहने दे अब , न देखना
उस तरफ जो भी है
अंजान बनना है नियति !
न जूझ तेरे मन से
वो तो नहीं आने वाली
फिर क्यों ये शिकन चेहरे पर ?
क्यों ये भार सा मन पर ?
अब हटा कर पर ये सब
सीख ले दुनिया में जीना
कब तक अंतर्मन में संघर्ष ?
जीत हो या हार कर ले
स्वीकार , रिश्तों की
असलियत ही है जीवन ,
तेरी पहचान ,
जान ले तेरी पहचान और
पहचान ले हर नज़र !!
मासूमियत से मायूस हो ,
समझ से नाता जोड़
नासमझ बने रहने में ही
भलाई तेरी , आंखें बंद ही
रहने दे अब , न देखना
उस तरफ जो भी है
अंजान बनना है नियति !
न जूझ तेरे मन से
वो तो नहीं आने वाली
फिर क्यों ये शिकन चेहरे पर ?
क्यों ये भार सा मन पर ?
अब हटा कर पर ये सब
सीख ले दुनिया में जीना
कब तक अंतर्मन में संघर्ष ?
जीत हो या हार कर ले
स्वीकार , रिश्तों की
असलियत ही है जीवन ,
तेरी पहचान ,
जान ले तेरी पहचान और
पहचान ले हर नज़र !!
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