जीते जी मरते हैं कितने ही अक्सर
मरते हैं जीने को लोग अक्सर
जिंदगी रास नहीं आती सबको
जिंदगी जीने की आस नहीं सबको
लेकिन ज़िंदगी जीना ही तो है
दूसरों की खातिर ही सही !
बदलते रिश्ते और जरूरतों
के गुलाम हैं हम और
जिंदगी हमें हर पड़ाव पर
देती है सवाल जीने का !
कैसे पार करें ये दरिया
है यही मन की सिहरन
है हिम्मत मन में
पार कर ही लेंगे हम
है उम्मीद हमें खुद से
जीने की खातिर
कुछ तो कर दिखायें हम !
लोग आसमान को छू लेते हैं
हम तो सिर्फ जीना चाहते हैं !!
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