Saturday, October 24, 2015

जीने के संघर्ष में

बड़े दिनों के बाद खुद को पहचाना
अजीब लेकिन सच
जिंदगी की भागमभाग में
भूल चली खुद को ,
आज जब आइना देखा
स्तब्ध रह गयी  !
कहां खो चुकी मैं अपने सपने ?
बचपन में सोचा थोड़े दिन ,
जब हुए बड़े तो थोड़े दिन और ,
मिली नौकरी , आईं जिम्मेदारी
कुछ दिन और सब्र कर लें ,
फिर शादी , बच्चे और परिवार ,
न जाने कैसे सालों बाद
याद आये मेरे भी सपने थे !
पढ़ना , नौकरी , परिवार
यही था मेरा संसार।
है कोई पहचान मेरी ?
जीने के संघर्ष में
मैं भूल ही गई
मेरी अपनी भी पहचान है !
आज जब उठा सवाल
घर के अलावा तुम्हे
है कुछ पता ?
तब ख्याल आया
मैंने भी देखे थे
सुनहरे सपने !!


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