Wednesday, October 21, 2015

मंदिर और मस्जिद

 बड़े दिनों के बाद आज मन फिर निकल पड़ा
अनजानी राहों पर जाने पहचाने लोग
आंखें चुराते डर से कहीं हमसे न आ मिलें
परेशानियों से घिरा नयी जगह
मैं फिरता मारा यहां वहां
कोई तो होगा मददगार
इतनी बड़ी दुनिया में मेरे लिए
कोई न कोई , कहीं न कहीं
जरूर थामेगा मेरे हाथ
दिन , महीने बने और मैं
नाकामियत के अंधेरे में
गुमनाम होने का डर  ,
एक दिन अचानक मिले
एक सज्जन ने
थाम मेरे हाथ कहा
देखें हैं मैंने मुश्किल के दिन,
न पलटकर देखना कभी,
जब दिखे कोई मजबूर
जरूर पलटकर देखना ,
मंदिर और मस्जिद में
नहीं है भगवान ,
मिलोगे अक्सर ही जीते जागते
इंसानो से , उनमे ही है भगवान .
आज भी मन करता है स्मरण उनका


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