आज जब मैंने पूछा एक बालक से
क्या करते हैं पिताजी
उसने कुछ सकुचाते कहा
किसान हैं वो ,
उसके स्वर में दर्द जाहिर था
मैंने किया सवाल
क्यों इतनी उदासी बेटे ?
कहो न गर्व से किसान हैं मेरे पिता !
उसने मुझे देख कहा
आकर देखिये हमारे घर
सिर्फ कटाई होते समय
खाना होता है नसीब
बाकी पूरे साल तो हमें दो जून
खाना भी नसीब न होता
कैसे मैं गर्व से कहूं
मेरे पिता एक किसान हैं ?
इतने नादान बालक को समझ है
वो दर्द क्यों हम न समझते !
सच ही तो है आज भी
किसान के घर में समृद्धि
क्या दीवाली और नव वर्ष
की सौगातें लाती हैं ?
कैसे हम गर्व से कृषि प्रधान
राष्ट्र का दम भरते हैं?
क्या करते हैं पिताजी
उसने कुछ सकुचाते कहा
किसान हैं वो ,
उसके स्वर में दर्द जाहिर था
मैंने किया सवाल
क्यों इतनी उदासी बेटे ?
कहो न गर्व से किसान हैं मेरे पिता !
उसने मुझे देख कहा
आकर देखिये हमारे घर
सिर्फ कटाई होते समय
खाना होता है नसीब
बाकी पूरे साल तो हमें दो जून
खाना भी नसीब न होता
कैसे मैं गर्व से कहूं
मेरे पिता एक किसान हैं ?
इतने नादान बालक को समझ है
वो दर्द क्यों हम न समझते !
सच ही तो है आज भी
किसान के घर में समृद्धि
क्या दीवाली और नव वर्ष
की सौगातें लाती हैं ?
कैसे हम गर्व से कृषि प्रधान
राष्ट्र का दम भरते हैं?
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