Thursday, December 31, 2015

I Wish You

This  year has stepped in silently
We welcome with grandeur
The love and dreams cherished
Our heart thumping with a sweet pain!
Expectations climbing high
Slowly our heart aches but
For the craving and longings
Remain the same!
Missed & gained & Learned!
How we dream to raise high
How much love we share
How close we feel to each other
How much we erase past
How long we strive to gain
How much we implement efforts
DECIDE our life
throughout the year
progress with head held HIGH
Self Esteem & confidence
At its peek,
I wish all your tears erased
Smile bright and be the SAME!!

Wednesday, December 30, 2015

क्यों इतने बंधन ?

तेरी आबरू पर इतने जश्न ?
गलती से ही सही कैसे हो ये सच ?
कभी कपड़ों तो कभी समय पर पाबंदी
इज्जत से जीने क्यों इतने बंधन ?
बचपन से बुढ़ापे तक कितने भार ढोएगी ?
किसमें है दम जो उठाये इतने जिम्मे ?
पूछ मेरे जीने का मकसद
जिंदगी कर दी कुर्बान तेरे खातिर
एक आदमी को आदमी बनाना
क्या इतना आसान होता है !!

Tuesday, December 29, 2015

O Woman !!

The agony makes blood freeze
Anger and hatred mingled
Force automatically mingled with blood
To crush the culprits person
But if we could hang them on the cross roads!
Even a baby is not exception!!
So agonizing yet common
Why don't cut them off?
Roaming free in disguise
These monsters are really Human???
Don't they have any woman in homes?
They do the same with them?
If dare not to think the same
How dare they touch one?
If we united could burn them alive,
Only our agonies can be light.
Woman is empowering ,
Losing themselves to
Cold Blooded death
WHY, Why , why ?


Saturday, December 12, 2015

ख़याल आया

जमाना गुजर गया आज ख़याल आया
खुद हम क्या चाहते हैं ?
बचपन पढ़ाई में , फिर कमाई में ,
जवानी कमाने में और फिर जिम्मेदारियों मे,
बच्चों को पालने में , उनकी जिंदगी संवारने में !

जब जिंदगी का पड़ाव बदले तब रहा सिर्फ गम 
मैंने क्या किया अपने लिए ?
जीवन है एक सपना क्यों न जियें 
जी भरकर इसे ?

सिर्फ कमाने और खाने में क्यों जाया करें ?
खुद जियो और जीने दो 
उम्मीदों को कुछ कम करो 
खुशी का प्याला छलक छलक जाएगा !



Thursday, December 10, 2015

अफ़सोस

अब की बार जरूर साड़ी लूंगा
जब भी घर जाता हूं कोई खर्च आड़े आता
मन की आस मन में ही रह जाती।
कितने ही दिन हो चले आये
हाथ में कुछ बचता ही नहीं ।
थोड़े रुपये हों तो कपडे खरीदूं
अगली बार कपड़ों के साथ ही जाना है।
खुश, काम के लिए तैयार हुआ
बाहर देखा भीड़ थी ,क्या हुआ ?
पड़ोस में मौत हुयी
देखा तो अफ़सोस हुआ ,
मौत पर नहीं जीने पर ,
एक तरफ महंगे कफ़न
दूसरी तरफ पहनने भी कपडे नहीं
वाह रे वाह तूने मुझे बख्शी
जिंदगी भी अजीब चीज है !!
काश मुझे भी ये जिंदगी मिलती !!


Wednesday, December 9, 2015

प्यार भरी सौगात

खिड़की के पास बैठी ,
देखती डाकिये को हर दिन 
शायद आज कोई लिखे 
मुझे भी एक चिठ्ठी !
हर दिन करती इंतज़ार 
एक दिन पूछ ही लिया ,
सिर्फ मुझे कुछ देते ही नहीं 
क्या मुझे कोई भी 
नहीं करता प्यार  ?
उस दिन के बाद ,
हर दूसरे दिन आती 
प्यार भरी सौगात लिए 
मेरे भी नाम एक चिठ्ठी !
मैं भी बड़ी हो चली थी 
समझने भी लगी थी ,
कुछ दिनों न डाकिया आये 
और न ही कोई चिठ्ठी !
माथा ठनका , क्या हुआ ?
पता चला डाकिये चाचा 
चल बसे चुपचाप !
फिर वही इंतज़ार 
पूछा तब जाना ये राज़ ,
डाकिये चाचा ही लिखते थे 
मुझे रात में प्यार भरे खत !
मैं चल नहीं सकती थी 
मेरी तो दुनिया ही थी 
मेरी छोटी सी खिड़की !
और उसमे प्यार की 
सौगात लाते थे 
मेरे प्यारे डाकिये चाचा !!


मेरा बचपन दे दो न !

आंखें चुराते दबे पांव आयी मेरे आंगन एक लहर सी ,
खुशी मिली और थोड़ा सा डर भी ,
क्यों ये बचपन बिना बताये भाग चला है ?
सब कुछ ही बदला-बदला सा लग रहा ,
आजादी कम , खेलना कम , खिलखिलाना गुम ,
क्यों ये मेरा बचपन मुझसे है दूर भागे ?
सबकी बातें बदलीं , भाव भी बदले ,
मैं भी तो बदली हूं या बदल रहे हैं सब !
क्यों ये मेरा अल्हड़पन दूर चला गया ?
ना चाहूं ये मैं , मुझे मेरा बचपन दे दो !
मेरी आजादी मुझे वापिस दे दो ना !
क्यों ये मेरा बचपन छीन रहे हैं ?

Saturday, December 5, 2015

खुशी

बिना किसी आहट आयी खुशी
दबे पांव है विराजी खुशी
सबके चेहरों का रंग है बदले
सबके मन में हैं सपने रंगीन ,
हर तरफ उल्लास है छाया
काफी दिनों के बाद जैसे
कोई मेहमान हो आया ,
मेरा मन मेरे काबू में नहीं
क्या करूं ना जानूं अभी
कैसे मैं करूं इजहार इसे ,
खुशी है जो लाई मेरी
दुलारी बिटिया मुझे !!


कुछ भी नहीं भाता बिना तुम्हारे !

बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आयी
बैठी जब लगी सोचने 
बचपन सा सुख है कहां ? 
बिना मां के प्यार के सुख है कहां ?
एक बालक चुराकर पैसे पिता के जेब से ,
ले आया एक पतंग 
चाहता था भेजना मां को एक चिठ्ठी !!
लंबा मांजा बांधकर , लिखी चिठ्ठी ,
मां बिना तेरे कुछ भी नहीं है भाता  
सब कहते तुम ऊपर भगवान के पास हो  ,
मिलते ही चिठ्ठी तुम चले आना ,
मुझे कुछ भी नहीं भाता बिना तुम्हारे !
पापा मुझपर गुस्सा है उतारे ,
मुझे दुलारो न सही मां साथ होना बस   
बस जल्द से जल्द चली आना !
मां तेरे बिना कुछ भी नहीं यहां ,
पापा देर गए हैं आते ,
ना ही कोई बात और न ही दुलार ,
वो तो सिर्फ तू ही जाने मां !
क्यों तू मुझे सोता छोड़ चली गयी मां ?
ये चिठ्ठी छुपकर हूं लिखता 
कोई न जाने मैंने चुराए पैसे ,
दूसरा तो कोई उतने ऊपर मिलने तुझे 
आ नहीं सकता न मां !!

पिता ने ढूंढें पैसे 
और बुला भेजा बेटे को 
कहां हैं पैसे , क्यों चुराए पैसे ?
बेतहाशा मारकर जब गए थक 
बैठे रहे दिल थामकर कुछ देर ,
जब हुयीं सिसकियां ख़त्म 
एक पतंग पर लिखी चिठ्ठी ,
"मां तुम जल्दी आ जाओ न मां ,
मैं इंतज़ार करूंगा मां ,
मां तुम आओगी न ?"
पढ़कर मन भर आया और दुःख भी ,
हाय मैंने ये क्या कर डाला ?
एक मासूम को इस तरह 
जीते जी मार डाला ?
आंखें भरी आंसुओं से 
अधमरे बेटे को गले से लगाया !




Tuesday, December 1, 2015

काली घनी जुल्फें

काली घनी जुल्फें तेरी
मेरे चेहरे पर जब छायीं
अनजाना सा एक नशा
हो गया मैं तेरा दीवाना
अब तो मुझे शायद ही
खुदा बचा पाये
हम तो गिर पड़े हैं
एक अंधेरे में
जहां सिर्फ तुम ही हो !



आखिर कब तक ?

सच और झूठ के मुखौटे आखिर कब तक ?
इंसान की कद्र होगी उसके पैसों से कब तक ?
रिश्तों की खुशबू ज़िंदा रहेगी लेकिन 
उसकी परवाह करना लोग समझेंगे कब तक ?
क्यों मैं इन दफनाये रिश्तों की सिसकियों से 
डरता फिरता हूं न जाने 
अक्सर ही खुद को ढूंढता फिरता हूं ,
इन सर्द लोगों की भीड़ में 
अपने दर्द सीने में छुपाये नकली मुस्कान 
अपने चेहरे पर चिपकाए आखिर 
खुद से ही लड़ता रहूंगा कब तक ? 
ऐ खुदा तूने मुझे इंसान बनाकर 
सजा दी या जिंदगी बख्शी ,
मैं कितने समय ये भार दिल में उठाये 
जीते जी मरता रहूंगा और
ये सिलसिला चलता रहेगा कब तक?
मैं भी तो एक जीता-जागता इंसान हूं 
ये दुनिया मुझसे जीने का हक़ 
आखिर छीनती रहेगी कब तक ??? 


दूर कहीं छोड़ आया अपने सपने सारे

एकांत मन के कितने ही सवाल
अनसुना कर देता हूं अक्सर ,
मन भी पलटकर देखना न चाहे 
हम भी पुराने ख़याल दिल से निकाले ,
चलते जा रहे हैं आगे ही आगे 
पलटकर देखने चंद यादें भी तो नहीं ,
दूर कहीं छोड़ आया अपने सपने सारे !
चैन नहीं है सोते-जागते ,
दिल को सुकून नहीं मिलता 
मन भी कभी है छटपटाता !
क्या और कहां भूला न जानू 
अतीत से हूं डरता मैं अनजाने ,
उठ बैठता हूं पसीने पसीने होकर
अचानक ही रातों को !
चैन से सोती है मेरी अर्धांगिनी 
न जाने क्यों मन है उचटता  ,
मेरा कुछ भी तो खोया नहीं 
है मुझे पूरा ख़याल ,
अचानक आज हुआ एहसास
मैंने अपनों को न ही प्यार दिया
और न ही उनका प्यार लिया ,
मेरी जिंदगी आज तक
रही अधूरी ही और शायद ,
अधूरी ही रह जाये मरुस्थल सी
मैंने तो खुद को ही भुला दिया
कुछ लोगों की खुशियों की खातिर !!