एकांत मन के कितने ही सवाल
अनसुना कर देता हूं अक्सर ,
मन भी पलटकर देखना न चाहे
हम भी पुराने ख़याल दिल से निकाले ,
चलते जा रहे हैं आगे ही आगे
पलटकर देखने चंद यादें भी तो नहीं ,
दूर कहीं छोड़ आया अपने सपने सारे !
चैन नहीं है सोते-जागते ,
दिल को सुकून नहीं मिलता
मन भी कभी है छटपटाता !
क्या और कहां भूला न जानू
अतीत से हूं डरता मैं अनजाने ,
उठ बैठता हूं पसीने पसीने होकर
अचानक ही रातों को !
अचानक ही रातों को !
चैन से सोती है मेरी अर्धांगिनी
न जाने क्यों मन है उचटता ,
मेरा कुछ भी तो खोया नहीं
है मुझे पूरा ख़याल ,
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