Tuesday, December 1, 2015

दूर कहीं छोड़ आया अपने सपने सारे

एकांत मन के कितने ही सवाल
अनसुना कर देता हूं अक्सर ,
मन भी पलटकर देखना न चाहे 
हम भी पुराने ख़याल दिल से निकाले ,
चलते जा रहे हैं आगे ही आगे 
पलटकर देखने चंद यादें भी तो नहीं ,
दूर कहीं छोड़ आया अपने सपने सारे !
चैन नहीं है सोते-जागते ,
दिल को सुकून नहीं मिलता 
मन भी कभी है छटपटाता !
क्या और कहां भूला न जानू 
अतीत से हूं डरता मैं अनजाने ,
उठ बैठता हूं पसीने पसीने होकर
अचानक ही रातों को !
चैन से सोती है मेरी अर्धांगिनी 
न जाने क्यों मन है उचटता  ,
मेरा कुछ भी तो खोया नहीं 
है मुझे पूरा ख़याल ,
अचानक आज हुआ एहसास
मैंने अपनों को न ही प्यार दिया
और न ही उनका प्यार लिया ,
मेरी जिंदगी आज तक
रही अधूरी ही और शायद ,
अधूरी ही रह जाये मरुस्थल सी
मैंने तो खुद को ही भुला दिया
कुछ लोगों की खुशियों की खातिर !!


No comments:

Post a Comment