Thursday, December 10, 2015

अफ़सोस

अब की बार जरूर साड़ी लूंगा
जब भी घर जाता हूं कोई खर्च आड़े आता
मन की आस मन में ही रह जाती।
कितने ही दिन हो चले आये
हाथ में कुछ बचता ही नहीं ।
थोड़े रुपये हों तो कपडे खरीदूं
अगली बार कपड़ों के साथ ही जाना है।
खुश, काम के लिए तैयार हुआ
बाहर देखा भीड़ थी ,क्या हुआ ?
पड़ोस में मौत हुयी
देखा तो अफ़सोस हुआ ,
मौत पर नहीं जीने पर ,
एक तरफ महंगे कफ़न
दूसरी तरफ पहनने भी कपडे नहीं
वाह रे वाह तूने मुझे बख्शी
जिंदगी भी अजीब चीज है !!
काश मुझे भी ये जिंदगी मिलती !!


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