बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आयी
बैठी जब लगी सोचने
बचपन सा सुख है कहां ?
बिना मां के प्यार के सुख है कहां ?
एक बालक चुराकर पैसे पिता के जेब से ,
ले आया एक पतंग
चाहता था भेजना मां को एक चिठ्ठी !!
लंबा मांजा बांधकर , लिखी चिठ्ठी ,
मां बिना तेरे कुछ भी नहीं है भाता
सब कहते तुम ऊपर भगवान के पास हो ,
मिलते ही चिठ्ठी तुम चले आना ,
मुझे कुछ भी नहीं भाता बिना तुम्हारे !
पापा मुझपर गुस्सा है उतारे ,
मुझे दुलारो न सही मां साथ होना बस
बस जल्द से जल्द चली आना !
मां तेरे बिना कुछ भी नहीं यहां ,
पापा देर गए हैं आते ,
ना ही कोई बात और न ही दुलार ,
वो तो सिर्फ तू ही जाने मां !
क्यों तू मुझे सोता छोड़ चली गयी मां ?
ये चिठ्ठी छुपकर हूं लिखता
कोई न जाने मैंने चुराए पैसे ,
दूसरा तो कोई उतने ऊपर मिलने तुझे
आ नहीं सकता न मां !!
पिता ने ढूंढें पैसे
और बुला भेजा बेटे को
कहां हैं पैसे , क्यों चुराए पैसे ?
बेतहाशा मारकर जब गए थक
बैठे रहे दिल थामकर कुछ देर ,
जब हुयीं सिसकियां ख़त्म
एक पतंग पर लिखी चिठ्ठी ,
"मां तुम जल्दी आ जाओ न मां ,
मैं इंतज़ार करूंगा मां ,
मां तुम आओगी न ?"
पढ़कर मन भर आया और दुःख भी ,
हाय मैंने ये क्या कर डाला ?
एक मासूम को इस तरह
जीते जी मार डाला ?
आंखें भरी आंसुओं से
अधमरे बेटे को गले से लगाया !
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