Wednesday, December 9, 2015

मेरा बचपन दे दो न !

आंखें चुराते दबे पांव आयी मेरे आंगन एक लहर सी ,
खुशी मिली और थोड़ा सा डर भी ,
क्यों ये बचपन बिना बताये भाग चला है ?
सब कुछ ही बदला-बदला सा लग रहा ,
आजादी कम , खेलना कम , खिलखिलाना गुम ,
क्यों ये मेरा बचपन मुझसे है दूर भागे ?
सबकी बातें बदलीं , भाव भी बदले ,
मैं भी तो बदली हूं या बदल रहे हैं सब !
क्यों ये मेरा अल्हड़पन दूर चला गया ?
ना चाहूं ये मैं , मुझे मेरा बचपन दे दो !
मेरी आजादी मुझे वापिस दे दो ना !
क्यों ये मेरा बचपन छीन रहे हैं ?

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