Saturday, December 12, 2015

ख़याल आया

जमाना गुजर गया आज ख़याल आया
खुद हम क्या चाहते हैं ?
बचपन पढ़ाई में , फिर कमाई में ,
जवानी कमाने में और फिर जिम्मेदारियों मे,
बच्चों को पालने में , उनकी जिंदगी संवारने में !

जब जिंदगी का पड़ाव बदले तब रहा सिर्फ गम 
मैंने क्या किया अपने लिए ?
जीवन है एक सपना क्यों न जियें 
जी भरकर इसे ?

सिर्फ कमाने और खाने में क्यों जाया करें ?
खुद जियो और जीने दो 
उम्मीदों को कुछ कम करो 
खुशी का प्याला छलक छलक जाएगा !



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