तेरी आबरू पर इतने जश्न ?
गलती से ही सही कैसे हो ये सच ?
कभी कपड़ों तो कभी समय पर पाबंदी
इज्जत से जीने क्यों इतने बंधन ?
बचपन से बुढ़ापे तक कितने भार ढोएगी ?
किसमें है दम जो उठाये इतने जिम्मे ?
पूछ मेरे जीने का मकसद
जिंदगी कर दी कुर्बान तेरे खातिर
एक आदमी को आदमी बनाना
क्या इतना आसान होता है !!
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