Wednesday, December 9, 2015

प्यार भरी सौगात

खिड़की के पास बैठी ,
देखती डाकिये को हर दिन 
शायद आज कोई लिखे 
मुझे भी एक चिठ्ठी !
हर दिन करती इंतज़ार 
एक दिन पूछ ही लिया ,
सिर्फ मुझे कुछ देते ही नहीं 
क्या मुझे कोई भी 
नहीं करता प्यार  ?
उस दिन के बाद ,
हर दूसरे दिन आती 
प्यार भरी सौगात लिए 
मेरे भी नाम एक चिठ्ठी !
मैं भी बड़ी हो चली थी 
समझने भी लगी थी ,
कुछ दिनों न डाकिया आये 
और न ही कोई चिठ्ठी !
माथा ठनका , क्या हुआ ?
पता चला डाकिये चाचा 
चल बसे चुपचाप !
फिर वही इंतज़ार 
पूछा तब जाना ये राज़ ,
डाकिये चाचा ही लिखते थे 
मुझे रात में प्यार भरे खत !
मैं चल नहीं सकती थी 
मेरी तो दुनिया ही थी 
मेरी छोटी सी खिड़की !
और उसमे प्यार की 
सौगात लाते थे 
मेरे प्यारे डाकिये चाचा !!


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