Sunday, August 7, 2016

छोटी मां

मन भर आया देख तुझे
देखा था बचपन में
अकेली खड़ी सिसकती
मां से जुदा टूटी सी
तब ही था होश संभाला।

बचपना दूर भाग
समझदारी से लिये
जिम्मेदारियां अपनी
भाई को संभाले वह
बन चली एक छोटी मां।

देखते सभी अचरज से
इस उम्र में उसका रूप
पढी लिखी, समझदार भी
दिन निकल चले तेजी से
बन चली बहना दुल्हन।

अचानक याद आया जैसे
रिश्ता कोई नहीं अब
कैसे छूटे भाई का हाथ ?
वह थी जहान जिसका
बह चले आंसू अनगिनत।

मजबूत बांहों ने थाम
पोंछे अश्रु मुस्कुराते
अब भाई रहेगा अपनी
बहन का बन रक्षक।

बह चले अश्रु अनगिनत
लेकिन आनंद से भरे अश्रु
अब दिल था हल्का और मन
खुश जैसे हवा में उड़ता पंख।





Wednesday, July 27, 2016

काश मैं जानती

धीरे धीरे उम्र की दहलीज
मुझे खींच लायी दूर कहीं 
न मां न पापा का डर 
मेरी अपनी छोटी सी दुनिया 

ना जाने कब कोई मन में समाया 
खींच तान चली और 
 जीत चली मैं ज़िद में 
सबने समझाया पर ना मानी 

शादी और परिवार के ख़्वाब 
दिन बने साल और मैं जीती 
सब कुछ भुला चली थी 
मां पिता जैसे विरोधी  

एक दिन गुपचुप शादी 
कर चली दहलीज पार                       
नए परिवार में सब भूल गयी 
दीवाली भी आयी 

उजडी मां की मांग  
मेरी ज़िद से पिता हारे 
जीवन से भी हार मान ली 
वर्दी के बिना पिता 

ना सह सके वो सदमा 
लिया रात में जहर और 
कर चले विदा हमें 
वाकई मैं जीत कर भी 
पूरी तरह हार गयी !





Friday, June 10, 2016

Longings

As baby longed to grow
Be free every way
Came schooling
Longed to go college
In college longed n longed
To have a love
Love and love..

Longed a high job
Then job abroad!
Again for marriage
Then babies
A boy and a girl..

Longing just goes on..

Kids grow well
Studies, job, marriage
Again same wheel
Why no end ??
Long and long for what??

Things go on adding
In end a lonely self
Searching and searching
Peace and life..

Life has the cycle
Endless longings..

Wednesday, June 8, 2016

जीवन के दर्द

जब दादी को बुखार होता
अम्मां बाहर चली जातीं
जब हमें बुखार होता
सिरहाने पर तैनात होतीं
मेरे बाल्य मन में कितने
सवाल उठाती थीं
ये तो कोई ना जानें।

जब दादी भूखी होतीं
अम्मां खीजतीं
और बाबू भूखा हो तब
डिब्बे से खाने की चीजें
अपने आप बाहर आतीं
मेरे छोटे से मन में कितने
सवाल उठाती थीं
ये तो कोई ना जानें।

जब दादी बीमार थीं
अम्मां बेवजह चिल्लातीं
दादी आंसू भी छुपा लेतीं
पापा के नाराज़ होने पर
अम्मां जब रोतीं
मैं दादी का चेहरा देखूं
मेरे अनजान मन के कितने
सवाल उठाती थीं
ये कौन जानें ??

हर मां के मन में दूरी
हो शायद , क्यों? ये ना जानूं।
बचपन छूटा पीछे अब
अम्मां दादी बन चलीं
मन में उठते सवालों का
जवाब ढूंढ़ता मैं
उनका चेहरा देखते ही
समझ जाता हूं।

ये समझ उन्हें क्यों नहीं
विचलित करते सवाल
जान कर अनजान थीं
वही अम्मां , तब जाना
उम्र के दर्द एक ही हैं
सिर्फ इंसान बदलते हैं।




Saturday, June 4, 2016

Beauty of life.

Marriage, nupital bliss.
Expected things.
Awaited dreams.
Holding close.
Memories of past.
Mesmerized self.

Craving for little one.
Happy moment.
Sharing smiles.
Getting love.
A tiny world.
Mornings content.

Shrieks & tears roll.
Baby no more.
Gone her smiles n hopes.
Shattered n gloomy.
Her days are blue.
Nights are empty.

Cradle is unpleasant.
Small shoes bring pain.
Caps and socks mock at her.
Husband's love duplicate!
Dull face, sunken eyes.
O, God! Why , Why?

Give my baby back.
To hold in arms.
Cradle is empty.
Heart craves the kicks.
I want the movement.
And the baby smell.
Around me always.

Again blessed.
Child is her world.
Mornings are chaos.
Days are hectic.
Work n work.
Heart is happy.
Life is beautiful.
So much in a baby!!




Saturday, May 21, 2016

Feel The Pain

Sat silent hands on cheeks
See with painful heart
Mom feeding a boy
Alas! If I was with mom..
His sight blurred
memories flash bright.

Holding mom's finger
Gets lost in crowd
Cries fail to reach home
Gagged and drugged
Comes to a home far away
Fails in efforts to even cry!

Taken to unidentified places
Blind folded becomes orphan
Forgets his identity lost in fear
Under vigil not to escape ever
He dreams to be with mom!

Eyes well up often
No food like home
Love is vanished
Kind words missing
Taken places around.

People, place, identity
Changed the boy
Now he begs for not
Food only mercy shown
A thing to call agonies.
O mom, come to me
Take in your arms!

झुर्रियों भरे हाथ

उदासी भरी आंखें , कृष काया 
उम्मीद से देख मुझे किया 
अनुरोध छोटी सी मदद का 
उम्र का तकाजा मैं बध्ध हुयी। 

थी जरूरत कुछ रूपयों की    
संकोच और दया का झोंक ,
किया मैंने आहार का निवेदन 
स्वीकृति ने दिया असीम सुख । 

देखी एक तृप्त झलक 
आंखों से बह चले अश्रु 
क्यों उम्र से थके मन और पांव 
मांगे दया की भीख गैरों से ?

सोचने पर मजबूर हो 
उदास मैं चली मजबूर सी 
सहायता भी तो कितनी मिले 
कौन है इतना समर्थ ?

अनजान बने छोड़ रखा है 
अपने परिवार से अलग 
उम्र का तकाजा भी क्या होगा ?
खाना और आराम 
क्या इतना भी नसीब ना हो ?

मन की चिंता यूं ही थी 
निकल गए कई महीने 
अचानक देखा एक दिन 
वही जगह वही कहानी 

तो क्या ये तरीका था 
जीने की असहाय युक्ति ?
ज़मीर इतना गिर गया ?
शर्म से सिर थामे रही बैठी 

असहाय सी झड़ी बह चली
झुर्रियों भरे हाथ थामे 
मैंने लिया घर का रूख 
दोनों कीआंखों से बहे आंसू 

एक तरफ असहाय सीउदासी 
दूसरी तरफ दृढ़ संकल्प 
दोनों को मिली एक तृप्ति 
स्नेह के आदान प्रदान की। 


Wednesday, May 11, 2016

निश्छल प्यार

आंखों से बहते निश्छल आंसू
सूख चले हैं
अपनेपन का अर्थ जाना
दिखे सब अचानक बदले !

कैसे और क्यों सब बदले
ना जाने मेरा निश्छल मन
वो तो पहचाने सिर्फ प्यार
प्यार तो शायद नहीं बिकता !

फिर क्यों इतनी पाबंदी ?
क्यों है इतना मुश्किल ?
हर किसी को है जरूरत
लेकिन कोई नहीं देता प्यार !

बेशकीमती चीजें खरीदें
पर प्यार कहां खरीदें ?
प्यार गुम गया कहीं
अनजान जगह में घूमें हम
ढूंढते ओस की बूंद जैसे !!

जब हुए अलग परिवार
खो गया निश्छल प्यार
चेहरा देख प्यार जताते
चेहरों से थोड़ी सी
झूठी नकाब हटाते !

अपने और पराये का
सारांश छोटों को समझाते
कैसे जानेंगे ये बच्चे
निश्छल प्यार की परिभाषा ??

कल यदि हम सिखाएं
सबसे प्यार करो तो ये
पूछें हमें , ये प्यार क्या है ?
किससे हम करें प्यार ?

न आने दें ये दिन
संभलकर सिखाएं जीना
इन्हें तो सिर्फ सच्चे प्यार
की खरी पहचान है !
ऐसे ही निस्वार्थ जीने दें !!



Sunday, May 8, 2016

गुजरा ज़माना

याद आ रहा मुझे गुजरा ज़माना
बचपन के खेल ,धूप और छांव
खेतों की कतारें, चहचहाते पंछी
ढलती धूप और सुनहरा सूरज
उठता चांद और दूधिया चांदनी

सब से घिरे हम
बचपन और साथी
खिलखिलाते फिरते
न कोई गम न कोई गिला

न जाने कहां खो गया
वो मासूम बचपन
छोड़ आये दूर बहुत ही दूर
गांवों में बिखरी खुशियां

थकना और सो जाना
निश्छल मन
मासूमियत भरे दिल
चिंता से परे

मन में सिर्फ प्यार
ना ही उम्मीद न ही गिले
जिंदगी में ऊंचा उठना चाहा
दर्द बढ़ गए और दवा नहीं
अपने भी बेगाने बन गए

ऊपर उठने की चाहत
हमें कहां ले आयी
ना हम खुश हैं और
ना ही उदास
मन में है सिर्फ
अपनेपन की आस

Saturday, May 7, 2016

Why it's me ??

Baby lying in dad's lap
Dad is stroking hair with love
A happy pair they make
The baby looks deep ,
Worrisome he looks again
Finds a blurred vision-like.

Calls urgently wife .
Scolding on why not check
Both take a closer look
With fear gripping deep
Both hold the child to light
Oh, why it's me for this plight?
Why my baby sight dimmed?
Exchanging looks they rush.

Doctor checking the boy
Shakes head in disbelief,
Why, what's wrong?
Both stand silent, fearing
Worst things in mind
Once, twice, thrice but
Looks not confirming good
Oh god, why this child chosen?
Take mine , spare him !!

Doctor says, remove this eye,
It's cancer, spread fully !
If  not taken , the other too
Would go bad.
Surgery a must, now itself!
Asking all the hospitals for
Baby eye, no eyes available
Ultimately taken eye and set
A stone eye to mar the looks.

After 25 yrs he stands before
A handsome boy of 30
I just look with love!
No sign of that eye now
Done surgery and he is fine!
Parents cry with joy!
Son returned back!

Wednesday, April 27, 2016

सुलभ हो चली जिंदगी

जीना सीख ना सकी ऐ दिल
जीना भूल सी चली ऐ दिल
क्यों है तुझे इतना गम
मेरी ज़िंदगी न हो मजबूर

मेरी मजबूरी ने मुझे ऐसा
बदला कि मैं खुद को
भूल चली , मेरी पहचान
भुला चली , परिवार के भार
में दबी खुद को इस तरह
मजबूर , नाराज़ , बेदर्द
कुछ और ना देख सकी

अपने गम से परे भी कुछ
तो होगा मन को भाता
कोई तो होगा मन के भीतर
मेरा अपना कोई तो होगा

इतने नाकाम दिनों के
जाने पर जाना
मेरा भी दिल धड़कता है
किसी को सुनाने के लिए
किसी को  देखने के लिए
ये दिल भी मेरा अब तक
इम्तिहान लेता रहा
मैं नाकाम सी जीती रही

आज मेरी मंज़िल मिली
मेरे मकसद मिले
जीने की एक चाह ,
एक राह जो अपनी थी
आज सुलभ हो चली
जिंदगी मेरी
प्यारी हो चली !!


Sunday, April 17, 2016

बदलते सच !!

मन में हाहाकार मचा
शोख थी अब हो गयी
गंभीर सब समझती
अनजाने अल्हड़ता
दफना चुकी संजीदगी में !!

क्या किसी को थी खबर ?
एक मुखौटे में छिपा गयी
कितने ही अनजाने सच !!
ये सच भी तो बदलते हैं
रिश्तों के तहत !!

मेरे सच झूठ हो जातेअक्सर ,
झूठ तो सरेआम सच हो गए !!
थी ये गुस्ताखी मेरी पर ,
मजबूर सी हो चली थी अब
ना था होश ना किसी का डर !!

सच से क्यों और कैसा डर ?
ना चाहूं और मुखौटे मैं !!
दम घुटने लगा है इस खेल में
सच झूठ और झूठ सच बने ,
कैसे , क्यों मैं गयी बदल ?

मां से रिश्ते थे कमजोर
मैं ही थी कमजोर ?
मन की उथल -पुथल
किये थी परेशान !
कैसे बताऊं मेरी उलझन ?
कौन है मेरा अपना ?

सब थे मेरे अपने लेकिन
मुखौटे से परे सब बेगाने से !
हमें जुड़े रहने का
नाजुक सा रिश्ता तो
तोड़ गई एक सांस
फिर क्यों
इतनी परेशानी ?

मन को झकझोर मैं
चल निकली अलग दिशा में !
जहाँ कोई नकली चेहरा
ना मुझे मजबूर करे
हंसने और रुलाने पर !!
ख़त्म हो चुकी मेरी सरहदें !!




जीवन एक पहेली !!

मां का ना होना ही गहरा हादसा
फिर चला एक अनन्त सिलसिला 
समझने और समझाने का 
रिश्तों को सहज बनाने का ,
बोझ बने रिश्ते अपनाने का 
क्यों ये कशमकश ?
क्यों ये बेहूदे झूठे मुखौटे ?
किससे क्या छुपाएं ?
किससे सब बताएं न जानूं !
क्यों  है मेरा मन विचलित ?
क्यों हैं ये मुखौटे ?




क्या इंसान ने जीना सीख लिया 
जीना ही खिलवाड़ बन गया ?
मेरी समझ ना आये ये सब 
बच्ची जो हूं समझी जाती,
जब आये जिम्मेदारी तब 
अचानक बड़ी बन जाती 
ये भी तो है ना जीना ?

कब मैं सीखूंगी ये सारे 
दांव पेंच जीने के लिए ,
कब झूठ सच और सच झूठ 
बनेंगे सिर्फ मुस्कुराने के लिए ?
जीवन बन गया एक पहेली
कब तक इनके तहत मैं 
दबती रहूंगी मन का गला घोंट ?

सारे रिश्ते नए से लगने लगे 
एक मां के जाने से इतना कुछ 
कैसे मैं लूं स्वीकार ?
मन तू है इन सबसे अनजान ,
मासूमियत से मायूस हो ,
समझ से नाता जोड़
नासमझ बने रहने में ही
भलाई तेरी , आंखें बंद ही
रहने दे अब , न देखना
उस तरफ जो भी है
अंजान बनना है नियति !

न जूझ तेरे मन से
वो तो नहीं आने वाली
फिर क्यों ये शिकन चेहरे पर ?
क्यों ये भार सा मन पर ?
अब हटा कर पर ये सब
सीख ले दुनिया में जीना
कब तक अंतर्मन में संघर्ष ?
जीत हो या हार कर ले
स्वीकार , रिश्तों की
असलियत ही है जीवन ,
तेरी पहचान ,
जान ले  तेरी पहचान और
पहचान ले हर नज़र !!



Saturday, April 2, 2016

मां की गोद

तलाशते थक गए पांव
हो कहां चली आओ न मां
ना अब तरसाओ इस तरह
ढूंढ़ता दर ब दर !

मैंने सुना तुम हो सर्वत्र
फिर क्यों न आ जाती
पास मेरी मां ?
क्या मेरी खता है बता ?

मैं हूं तेरी धड़कन
तेरी सांस , तेरा प्यार
फिर क्यों है ऐसी
तड़पाए मुझे मां ?

जो ना आईं तो मैं
चली आउंगी पास तेरे
जब मेरी आंखें खुलें 
तुम होगी न मेरे पास ?

मां की गोद में
गुजरी रात, मां थी पास
सर पर फेरा हाथ
मैंने होश संभाला
सूरज चुभने सा लगा !

आंखें खुलीं,दिल हल्का
मां का प्यार था साथ
खुशी से आंखों में चमक
मां तू पास मेरे आ जा ना !!

निश्छल प्यार

उन्हें देख आंखें झपकना भूलीं
मन अपनी उदासी और तड़प
दिल की धड़कन तेज हो चलीं
खुशी कई गुना बढ़ गयी
ऐसा क्या है उनमें अनोखा ?

सिर्फ एक निश्छल प्यार
शांत और प्यारी आवाज
खींचे हमें उनकी ओर
क्या है ना जाने अब तक !

दुनिया में अगर कोई ताकत
है सबके ऊपर तो वो है
प्यार, दूसरा कुछ भी नहीं
समझने लगे हमें साल !

कहीं भी हों तड़प जाए मन
उस निश्छल प्यार को
मां दुनिया में तेरी गोद में
है जो सुकून, है कहीं और ?




Friday, April 1, 2016

चंद खुश लम्हे

रिश्तों के समंदर में खुद को सहेजे
दिन बने महीने और महीने बने साल
याद जब आयी तो बहने लगे नैन
कब कहां कुछ अलग हो गया
न जान सकी मैं !

बचपन की सरहद कर चुकी पार
अल्हड से बनी मैं जिम्मेदार ,
चंद खुश लम्हे जीना सीख ले
अब तो तुझे जाना समंदर पार
खुशी के मतलब बदलेंगे
और जीवन के मकसद भी !

कल तक जो था जीना अब
लगे एक बेहूदा मज़ाक ,
हर एक पल मुहर लगेगी
जिंदगी भी बनेगी एक भार
ऐसे भी समय आएंगे कि मन
चाहे तोड़ कर भागना उस पार !

पर तूने है जूझना और जीतना
इस पार नहीं जाना है उस पार
कर दिखाना है सबको वो सब
जिसे मन ने सहेजा है बार बार !

सिर्फ औरत होना तो नहीं
कोई दोष कि जीते जी
कर लेना पड़े दफ़न
सपने और खुशियों को
जीना तो है एक संघर्ष
जीत होनी है एक दिन !!

Tuesday, March 29, 2016

प्रतिरूप

बचपन तो बचपने में गुजर गया
जो दिल ने चाहा वो मिल गया
ना कोई चाह ना ही कोई गम ,
अगले पड़ाव पर खुद को भूले
सिर्फ परिवार ही था सर आंखों पर ,
आज जब सारे पंछी उड़ चुके
इस बगिया में बैठे अकेले मैं
देखता हूं मेरे संसार के प्रतिरूप !
स्तंभित कुछ और चकित कुछ
सृजन और सृष्टि पर !
कोई शब्द नहीं हैं पास मेरे
कोई चाह नहीं बाकी
सिर्फ है खुशी अपनी छोटी सी
दुनिया के सुन्दर से प्रतिबिंब पर ,
खुश और मुग्ध हो चला हूं अब !


Thursday, March 24, 2016

रिश्ते

छलकी आंखों को तुझे देख
मिला सुकून लेकिन ज़रा सोच ,
क्या जीवन साथी ही होते हैं
सब कुछ ??

चंद सालों में अगर न हो
एक किलकारी तो क्यों
बोझ से लगते यही रिश्ते ??

हर रिश्ते की एक पहचान है
हर रिश्ते की एक मिठास है
गर रख सको कायम
तो ज़िंदगी फिर
क्यों उदास है ??



Tuesday, March 22, 2016

जीवन

जिंदगी के टूटे तार बिखर गए
जिंदगी की लय भी छूट गयी
तेरे नाम कर दी जिंदगी फिर भी
गम है मुझे खुद की पहचान
लुट गयी और मैं
उफ्फ भी न कर सकी !!

कभी तो ज़िंदगी रास आएगी
कभी तो ज़िंदगी शिकवे सुनेगी ,
मुझे भी खुशियों की सौगात मिलेगी
जीते जी शायद कभी पलटकर देखूं
और खुश हो लूं अपनी राह पर !!

Wednesday, March 9, 2016

भूल भुलैया

चेहरा है मुरझाया सा
मन है उत्साह रहित ,
झुलसी आशायें और सपने 
आंखें उदासी भरी ,
जब भी देखूं 
मन भर आता पर ,
दूर से दिखने वाले 
चेहरे की मन की बातें ,
ना जान सकी अब तक !!
जब भी देखा दूर से ही 
समझने की कोशिश नहीं ,
आज समझ आया मन
इक भूल भुलैया ,
और इक धोखा भी
जो हम चाहें वही
दिखाने वाला एक आईना !


Saturday, March 5, 2016

बदलते अर्थ

पलक झपकते दुनिया बदली
बदल चला संसार 
पापा का होना और 
अब ना होना ,
एक सांस के चलते 
कितनी सारी बातों के 
अर्थ बदल जाते हैं ,
आज भी सब कुछ  
वैसा ही तो है
आज भी याद हैं मुझे,
पापा जल्दी आ जाना 
छोटी सी गुड़िया लाना !!
बस मेरी छोटी सी 
दुनिया आबाद थी 
और अब उजड़ चली है !!

Tuesday, January 12, 2016

Hungry Baby

Eyes search , heart thumps
No sign of mommy around
Tears dry on cheeks darken
Parched throat voice frail !
Mom has no feeds
Leave baby an search to
Quench the wailing baby!

Crying made him faint
Hunger is a curse
Unaware baby lies !

Back comes mom
Baby lies less of life
Held baby close
Mom cries an cries
Fall on grimes
Tears dry an life gone!

Before dump meal
Scene comes fresh
Eyes wet , heart heavy
I call babies with
Hunger in eyes
Waiting for a bright
Sun Rise!!


Wednesday, January 6, 2016

Penury....

Crossing the lane in well clad crowd
Could not see any other
Feast arranged in dazzling way
Guest an host exchanging wish !
Stepped out saw a lean boy
Clean the plates thrown !
Greed in hungry eyes
Lick plates till no content
More an more came giggling
No notice of this baby
Eyes lifeless an lips dry
Look like a skeleton to me !
Bent asked him his need
Came a frail smile
Puny hands reach mine
Touching my feet !
Sat beside I wondered
We remain same besides attire
Hunger has same pains
Pinching sharp
Could feel the crave
Penury gives this baby!!


Tuesday, January 5, 2016

No Words !

O baby of a gone dad!
O mom immersed in grief !
So young to see this day
Dismay evolving you but
Hold on to your feet !
Compose and equip.
Courage and determination ,
Make you stand again !
Look in baby eyes
Love an hope still bright !
Stand an start again ,
One day you can
Wonder , yesterdays
Were so very painful !
Times change dear
Have faith in you !
Left full of pride
Heart thumping
For motherland ,
Indeed a Gem of Gems!!
God Bless You Dear!!





Saturday, January 2, 2016

Teaching Life

Got the shock of my life
Pushed down forcefully
Came this news of mom being sick
Ran to her side with tears
But she could barely see!!

Word sent to family to reach
All except the elder one
When lastly came,
Excuse hang on face
Wife refused to clean up
Mess in the bed of fragile mom!!

She waited and waved
Whispered in ears
Her desire to be a baby
To the gloomy daughter
In unwilling mood
She lacked a baby and mom
A caring lady of her home
Who stood shocked
Over the love of mom!!

Feeling ashamed
Ran to her bed side weeping
But mom left for her abode
Gifting the lady a promise
Not to feel for baby
Mom felt her pain but
She failed to!!

Pains are same
Felt at heart
Few get them and care
Few mock and
Face the blows
Fate gives them
teachings of lifetime!!