Sunday, August 16, 2015

कामयाबी

दिल डर-डर कर है परेशान
जमाने भर से है गुलाम ,
औरों का किये है ख्याल
परेशान दिन रात
क्यों मैं सबसे इतना डरूं ?
किसका डर ? कौन देगा साथ ?
परेशानी में तो कोई नहीं आता ,
फिर क्यों ये डर ?
ये डर है या नाकामी मेरी
जो मुझे आगे बढ़ने न दे ?
सोचा तो पाया कोई भी मेरा नहीं
सिवा मेरी हिम्मत के
जो जीतूं तो सब हैं साथ
हारा तो खड़ा अकेला !!
फिर क्यों इतना लिहाज
किसका जो निंदा ही करें ?
समय पड़ने पर भागें दूर ?
इनसे तो भले हैं अनजान
जो प्यार से जवाब तो देते हैं !
मेरी कमजोरी है कि मैं खुद
को छोड़ भागता हूं
ढूंढता औरों को ,
एक डर मन में छुपाये
कहीं नाकाम न हो जाऊं !
नाकामी ही तो लाती है
कामयाबी पास
मैं भूला और नाकामी ने
मुझे अपना बनाया !
अब है पूरा विश्वास
अपनी सच्ची कामयाबी का !!


Saturday, August 15, 2015

मेरी उलझन

जब भी दिल धड़कता है ,
एक आहट सी सुनती हूं करीब ,
मैं अपने एकांत मन में
कुछ ढूंढती अपने लिए ,
जो सिर्फ मेरा हो !
क्या रखा है मेरे लिए ,
कुछ भी तो नहीं !
मेरा तो कुछ है ही नहीं !
सोच दुखी बैठी रही ,
मेरी उलझन देख
मेरे हमराज ने कहा ,
ये सब तुम्हारे बिना
कुछ भी नहीं !
मैंने नयी अनुभूति से देखा ,
मैं , बच्चे , घर सब ही तो
अधूरे हैं तुम्हारे बिना
फिर क्यों ये उलझन ?
मैंने एक क्षण में सब
फिर से बदलते देखा ,
वही पुरानी बातें मुझे
बिलकुल बदली सी लगीं
बदला था मेरा मन !!



Thursday, August 13, 2015

ढूंढती आंखें

खामोश स्तब्ध आंखों में हैं एक सवाल
जवाब ढूंढती आंखें ,
चुभतीं हैं गहरे तक लेकिन 
शब्द नहीं पास ,
कैसे दूं जवाब इन खामोश सवालों का
जिनमे है दर्द का समंदर ?
मेरे पिता कहां हैं ?
आंखों में है गहरा दर्द ,
अपमान का दुःख ,
जीने की चाह ,
मैं कैसे कहूं ? 
मैंने ही तो देखा था सपना 
तुझे अपनी बांहों में भरने का ,
तेरी आंखों से दुनिया देखने का ,
जो होतीं मेरी आंखें देखती मैं  ,
उस नाकामियत भरे चेहरे को ,
जिसने मुझे जीती लाश बनाया ,
आंखें नहीं , जीवन कैसे खोती ?
तब न सोचा इसका जवाब ,
आज धिक्कारता है मन !
तूने क्या किया ? है क्या तेरी खता ?
सुन्दर होना , स्त्री होना या आंखें ना होना ?
आंखें होतीं तो गंदगी दिखती 
है बेहतर कि मैं हूं निर्दोष 
काश , मैं तुझे बता पाती !!
हैं तेरी आंखें मेरा सपना , मेरा सच !!
मेरा अस्तित्व , मेरा जीवन !!

   

सिवा सच्चे प्यार के

दूर आसमान में चमक रहा चांद ,
उठी मन में एक हलचल ,
मन कहीं ढूंढता एक दिलासा ,
भूखा फिरता है मन यहां वहां ,
सब कुछ मिल जाता है ,
सिवा सच्चे प्यार के ,
तरसे मन को कहीं कोई मिल जाता ,
जो झूठा ही सही प्यार तो करता !

हर कुछ मिलते इस जहां में ,
क्यों इंसान इतना रूखा हो चला ,
प्यार तो जैसे दुकानो में बिकता हो ,
सब कुछ है घरों में , 
मन तो उजाड़ हैं प्यार के बिना , 
प्यार सिमट चला है एक और दो में , 
परिवार ही नहीं मन भी सिमट चले हैं !

याद आते हैं अक्सर वो दिन , 
बर्तन खाली हों चाहे ,
मन में था प्यार लबालब भरा 
सीमा बद्ध नहीं ,
असीमित और निष्कपट ,
आज तो हम सीमा में इस हद तक 
बंध चुके कि बातें भी नाप तौल के 
करते हैं, मुस्कान भी सिर्फ 
कोनों से लौट जातीं हैं 
जैसे ज्यादा होने पर 
इनकम टैक्स लग जाए !

बदल चुकीं हैं परिभाषाएं ,  
हम खड़े हैं वहीँ यादों में खोये 
यादों में ही सही सच्चे प्यार 
की झलक तो देती मन को 
तसल्ली और चाह जीने की 
वरना आज तो प्यार भी 
चांद की तरह दूर हो चला है !! 

सच्चे प्यार की कहानी

भर आईं अंखियां देख तेरा प्यार ,
तुझे दूर भेज तरसा था मन कई बार ,
मैंने देखा तुझे सिर्फ प्यार से लेकिन ,
बच्चे का भार उठाये गर्भ में ,
कड़ी धूप की न परवाह ,
चली आई मीलों पार ,
एक नज़र देखने मुझे ,
धन्य है तेरा प्यार , 
इंसान ने तुझे कहा जानवर ,
मैंने दिया नाम "प्यार का मसीहा" 
पशुओं से इंसान सच्चा प्यार ,
सीखें तो इंसानियत कायम रहे !!

ये है मेरी प्यारी सी बकरी 
के सच्चे प्यार की कहानी !   

Thursday, August 6, 2015

गुमराह मन

किस चाह में गुमराह है तेरा मन
न होश किसी उसूल का ,
न ख्याल किसी बात का
इक चाह दौलत की !
दौड़ते दौड़ते थक जायेंगे पांव 
मन फिर भी चाहेगा और ,
इच्छा का अंत न जाना किसी ने
थोड़ी दूर चल और कहे ये मन ,
मन की सुन भागोगे कब तक ?
तेरी सीमा तू ही न जाने 
सुन मन की बात भूल न जाना ,
आखिर में सिर्फ कफ़न ही रहेगा 
हर चाहत से दूर बहुत दूर ,
क्यों ये भागम भाग , क्यों ये लड़ाई ?
क्यों मन में ये झंझावात ?
आखिर तेरी पहचान है क्या ?
क्या किया , कैसे जिया , 
यही रहेगा नाम !
फिर क्यों उठाये फिरे  
दुनिया के तमाम तामझाम ?
क्या है तेरा वो तू ही न जाने ,
क्यों बेवजह इतना परेशान ?
देना लेना ऊपर वाला जाने , 
ये बोझ है किसका हम ये भी न जाने ?
जीवन तो एक सपना है ,
कब हो पूरा , कोई न जाने ? 
जिंदगी थोड़ी चैन से जी लें !!





Tuesday, August 4, 2015

जिंदगी तेरी ये मजाल

जिंदगी तेरी ये मजाल
तू मुझे तरसाये हर दिन 
देखूं मैं तुझे चाहत भरी नज़र से,
भागता फिरूं ढूंढते तुझे 
दर ब दर ठोकरें खाते 
पूछूं तुझसे ये सवाल ,
क्या है मेरी खता और 
क्यूं तू है इतनी जालिम ?
न पता है मां का और न 
ही मेरा , कौन हूं मैं , 
क्या है मेरी पहचान ,
क्या एक नाम ही है पहचान ?
नाम में क्या रखा है ?
दूसरों को लूटने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ?
इंसानियत का नाम  
बदनाम करने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ? 
लोगों को गुमराह करने 
तैयार रहने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ?
नही जरूरत एक नाम की 
जो बदनाम हो , गुमनाम हो , 
बेहतर है मेरी अपनी पहचान
मेरी तदबीर हो मेरी पहचान
न किसी से डरूं , न ही लड़ूं 
मेरी पहचान न होगी गुलाम !                                                                        


प्यासा मन

मेरे चेहरे पर आंखें टिका
जाने क्या सोच रही!!
आंखों में चमक नहीं 
होठों पर मुस्कान नहीं 
आंखों में जान नहीं !
मुझे क्यों ये खींचे अपनी ओर 
मुझसे क्या रिश्ता है बनता 
क्यों मुझे एक बंधन खींचे ?
दूर दूर तक कोई नहीं 
ये अकेली खड़ी किसलिए ?
मेरे पांव थम गए , 
आंखें नम हों चलीं 
थामें उसके छोटे हाथ  
खींचा उसको अपने पास 
बैठी रही खामोश 
उसे ज़रा भी न था होश 
कौन है ये जो मुझे बुलाये ?
क्या हुआ मुझे न जाने 
चल पड़ा मैं उठाये 
तेज कदम जैसे कोई 
रोक लेगा मुझे 
घर पहुंचा , देखा उसे  
सूखे होंठ , आंख नम , 
भूखी थी निगाहें, प्यासा मन 
आज मुझे 
भूले बिसरे दिन
याद हो चले जब
मैं निकला था 
किसे खोजने न जाने!
गुम गया इस दुनिया में 
अपनी पहचान बनाने ,
आज इन आंखों में 
खुद को देखा शायद !!
दिल में उमड रहा प्यार 
अपने बचपन को न सही 
इसे संवार लूं शायद !!
मुझे एक बेटी मिली 
दुःख सुख में साझा लेने 
मेरी अपनी दुनिया 
ममता से परिपूर्ण बनी !!


Monday, August 3, 2015

छलकी आंखें

आंखें छलक छलक जातीं हैं
जब भी तेरा प्यार याद आता है ,
छलकती आंखों के आंसूं भी
सूख जाते है इंतज़ार में ,
लेकिन तेरी एक झलक के लिए
मैं तरसता ही रह जाता हूं ,
क्यों ये जिद , क्यों ये दिखावा
जो हर सरहद के पार ,
जाने को तैयार है लेकिन
सरहदें ही नज़र नहीं आतीं ,
सिर्फ हमारी जिद ही अचल
हमारी सहिष्णुता का ,
इम्तेहान लेती है !!
ताज्जुब है कि तू मां है मेरी
और इस हद तक जाने की ,
हिम्मत है तेरी ,
कि मेरी पुकार
तुझ तक नहीं जाती !!
सिर्फ एक छोटी सी
तड़प है दिल में ,
जो सिर्फ तेरे प्यार के सिवा कुछ न जानती , 
क्यों ये दिल इतना नादान है ?
भूल जाता है ये बात कि
हर रिश्ता आज सिर्फ , 
बेजान बोझ सा बन चुका है
फिर कैसे पहुंचेगी 
तेरी आवाज वहां तक ,
जहां सिर्फ प्यार के अलावा , 
सब कुछ है !!
मातृत्व भी एक बोझ सा बन चुका है , 
मां मैंने तुझे समझने की
एक बेहद ही नाकाम कोशिश की ,
तुम जीत गयीं और हार गया मैं , 
मां तुम भी मेरी सहनशीलता का
इम्तेहान न लो , 
मैं तो बिखरा हूं जहां तक
तेरे पांव जाते हैं , 
कोई भी कतरा तेरे पांवों को न दुखाये ,
जो भी हो है तो तू मेरी मां ना !!            




.रिश्तों की सुन्दर दुनिया

दिल ने तो सिर्फ मचलना ही सीखा
लेकिन लोगों ने मचलते दिल को 
तोडना सीखा,
रिश्तों की सुन्दर दुनिया में 
लोगों ने सरे आम ठोकरें देना सीखा 
हमने हर एक रिश्ते को
अकेले में सिसकते देखा 
लेकिन आमने सामने होने पर,
दिखावे की खातिर हंसते  देखा
अक्सर ही मन छटपटाता है ये पूछने
कि कौन है तेरा अपना
और कौन पराया ?
क्यों ये झूठा दिखावा ?
क्यों ये दम तोड़ती सिसकियां ?
जर्रे जर्रे पर लिखे
तेरे नाम को मिटाने के बहाने 
करीब आकर तसल्ली पाती है ,
अगले ही क्षण मन को
छुपाकर तेरा नाम भी 
भूलने का दिखावा करती है
कि कोई तुझे 
गलती से भी बुरा न कहे
और ये नकलीपन 
सिर्फ तुझे सबसे बचाने के लिए,
तू क्या जाने तड़प और प्यार ,
वो तो कब ही दफ़न हो गया 
उसकी रूह भी लेकिन भटकती है 
तेरी यादें दिल में छुपाये 
शायद कभी किसी मोड़ पर
हम फिर मिल जाएँ !!

जिंदगी से सवाल

एक सवाल किया मैंने
जिंदगी तूने मुझे क्या दिया ?
जीवन , परिवार , खुशी ,
बुद्धि , लक्ष्य , सफलता ,
आरोग्य सब तो दिया तुझे ,
और क्या दूं तुझे ?
दे मुझे शोहरत और दौलत !!
शोहरत और दौलत मिली ,
उसी पल मैंने खुद को देखा .
हर चीज़ थी मेरे पास
फिर भी मैं खुश नहीं !!
मेरे अपनों ने मुझे नहीं
दौलत को चाहा
हर दम साथ उम्मीद से
पर सच्चा प्यार नहीं !!
फिर मैंने जिंदगी से पूछा,
मैं गलत था जो मेरा था
वह सच था न चाहूं मैं दौलत ,
दे सिर्फ मुझे शांति
जो न है मेरे पास !!
अब न है मुझे कोई गिला
तूने सच मुझे सब कुछ दिया !!
अब जिंदगी ने पूछा
क्यों इतने हो परेशान
बिना पूछे ही मैं जानूं
तेरी चाह और करूं
तुझ पर हर चीज न्योछावर
बस ज़रा सब्र कर
ले ले जीने का मजा !!
न आएगी हर बात दुबारा
मैं मन ही मन मुस्कुराया !!




एक डर

मेरे अपने हैं मेरे सपने जो
कभी पूरे होने के इंतज़ार में 
दम लेते हैं घुट घुट कर 
मगर जीते हैं। 
दंग हैं दुनिया के बदलते रंग 
देख जो अपनों को भी अपना 
कहने से डरते हैं। 
डर है कि मैं प्यार से 
लूटा न जाऊं ,
डर है कि मैं प्यार से 
बिगड़ न जाऊं ,
डर है कि रिश्ते
मेरे सच्चे न हों जायें ,
डर है कि ममता 
जीत न जाये , 
डर है कि बीवी 
मुझे छोड़ न जाए ,
सारे डर मन में छिपाए 
मैं एक इंसान होने का 
झूठा दम भरता हूं ,
सबसे आंखें मिलाने से भी 
डरता हूं ,
कहीं सच न खुल जाये और 
जाहिर न हो जाए ,
मैं भी तरसता हूं 
प्यार के लिए और 
मेरा दिल भी धड़कता है 
प्यार के लिए ,
सिर्फ एक डर कि 
मैं कमजोर न बन जाऊं। 
मैं खुद को सबसे छुपाये 
हंसते हंसते कभी कभी 
सच ही में रो लेता हूं 
मेरे आंसूं भी मेरी हंसी 
में डर से छिपा लेता हूं 
कोई मुझे शायद कभी 
सही सही समझे 
शायद मेरे भी सपने भी 
कभी सच हों जाएं !!


बदलते रिश्ते

अक्सर ही मैंने रिश्तों को
जीते जी मरते देखा है,
मरने पर लोगों को
बेवजह रोते देखा है।  
जीते जी जो एक दूसरे की
कदर ही नहीं करते , 
उनको भी दिल खोलकर
झूठी बातें कहते देखा है। 
क्यूं लोग इस कदर
झूठ को ओढ़े फिरते हैं,
अक्सर ही अपने दिल में
इस सवाल को घूमते देखा है। 
हमने तो आज तक रिश्तों को
बदलते समय के साथ ,
बदलते बदलते मरते ही देखा है। 
इंसान को भगवान ने
बख्शी एक अमानत , 
लेकिन हमने सरेआम
इस अमानत को लुटते देखा है।
जो सर पर छत और
दो जून खाने को तरसते हैं , 
अक्सर ही उनके
मन में सच्चा प्यार देखा है।  
खुदा तूने क्यों ये दुनिया बनाई , 
सब कुछ होते भी लोगों को
झूठी दुनिया में जीते देखा है।  
रिश्ते जो ख़ुशी का उद्गम होते हैं ,
उनको सरेआम लोगों को
बेनाम करते देखा है। 
हमसे तो बेहतर वो चंद होते है ,
जो कम से कम
रिश्तों का झूठा दम तो नहीं भरते। 
जिन किसी हाथों ने उनको संवारा , 
उन हाथों को जीते जी
वो आबाद करते हैं। 
काश हम सीख पाते रिश्तों को बनाना ,
जिनकी मिठास ने
हमें गुलाम बनते देखा हैं।

बेशकीमती लम्हे

बचपन के वो चंद लम्हे
जो दिल दिमाग भर दें 
मीठी  मीठी यादों से  
मन सपनो और ख़ुशी से।  
जिंदगी मकसद से  
कहां हर किसी को 
नसीब होते हैं ये 
बेशकीमती लम्हे !
जो आंखों से कभी आंसूं 
कभी होठों से ख़ुशी में  
तब्दील होते होते 
अपनी महक से हमें 
अपनी जिंदगी की 
सुंदरता का एहसास 
करा जाते हैं।  
जिंदगी के हर उतार चढाव
और सवालों से हमें
वाकिफ कर जूझने की
हिम्मत और जीतने की
ललक मन में दे जाते हैं।  
बचपन के वो बेशकीमती लम्हे !

प्यारी सी दुनिया

यूं ही बस तकते-तकते आसमान ,
मन कहीं राह भूल जा छिपा,
उन लमहों में , जहां न कोई गम थे 
और न कोई शिकवे  
छोटी-छोटी ख्वाहिशों की
प्यारी सी दुनिया 
न्यारी सी दुनिया जिसमे 
सिर्फ खुशियां ही थीं  
भाई और बहनो की एक पलटन 
सदा तैयार खेलने और झगडने को 
हरदम तत्पर, अपने झगड़ों को
भूलने और खिलखिलाने को 
अब कहां है वो चेहरे और फुर्सत 
सिर्फ मन में है यादों का एक 
पिटारा जिसमे अक्सर ही मन 
ढूंढ लाता है यादों के 
बेशकीमती क्षण और
बरबस ही एक नमीं भी 
जो देती है एक सुखद सी 
अनुभूति एक मीठा सा दर्द 
एक नयी ऊर्जा का संचार 
जिसको शब्द नहीं मन ही 
जानता है ,
एक सुखद अनुभूति
बरबस ही मन को भिगो गयीं
प्यार के छोटे से समंदर की लहरें। 

मुस्कान

एक हल्की सी मुस्कुराहट
और उसमे छुपे कितने ही अर्थ 
जो सिर्फ हम ही जानें,
लेकिन उस एक मुस्कराहट में 
छुपे दर्द शायद ही कोई जानें!!
बचपन से आज तक मैंने 
कभी उस मुस्कराहट में जरा सा भी 
फर्क नहीं देखा,
अक्सर ये सोचूं कि कैसे ये 
मन को चुराने वाली मुस्कान 
हमेशा ही होठों पर है 
विराजमान?
आज जिंदगी के इस मोड़ पर 
जब भी याद करती हूं तो
विस्मय से भर जाता है मन!! 
कितने ही दर्दों को खुद में 
छुपाये सिर्फ हमारे लिए 
सदा ही मुस्कुराती रहतीं थीं,
शायद इसी लिए हमें 
उनकी याद भी आती है,
और कई सीखें भी कि 
जिंदगी के उतार-चढ़ाव 
तो सिर्फ एक मौका है 
खुद की क्षमताओं को 
पहचानने का!!
डटे रहो अपनी मुस्कान से 
औरों का भी हौसला बुलंद कर,  
एक आह्वान देने
वाली इस प्यारी सी मुस्कान 
को अपने वजूद से अलग न कर, 
ताकि हर एक मुश्किल में 
हम तुझे देख अपने को 
सक्षम महसूस का सकें, 
और हर कामयाबी में 
तेरी याद कर खुद 
पर नाज़ कर सके मां!!


मेरी पहचान

आज तक मेरी उलझन ये नहीं
कि कैसे रहूं और क्या करूं ?
जब भी हो कुछ परेशानी
तो हर नज़र टिके मेरे चेहरे पर,
अनजान बनी मैं खामोश रहूं
और रहूं हमेशा ही खामोश!!
आंसूं बहें भी तब, जब न कोई जाने
मेरी उलझन मैं ही न जानूं !!
क्यों मुझे ये शाप मिला
क्यों मुझे अपना प्रतिरूप मिला ?
क्यों मेरा मातृत्व मुझसे छिना ?
क्या मां होना एक शाप है ?
क्या बेटी का जन्म अभिशाप है ?
मुझसे मेरी बेटी को छीन मुझे ही
धमकाया , घर में रहना हो तो
खामोशी ही बेहतर !!
फिर कैसे हमसे इतनी अपेक्षाएं ?
कैसे अभिनय की उम्मीद ?
जब दिल चाहा घर से निकाला
और जब चाहा बुला लिया ?
क्या अस्तित्व है मेरा ?
क्या पहचान है मेरी ?
क्या वजूद है मेरा ?
परिवार , समुदाय , बच्चे ,
कब तक  बनेंगे इस तरह मुजरिम ?
क्या स्त्री होना शाप है ?
सबने मुझसे छोटा सा सवाल किया
क्यों फिर बेटी को जन्म दिया ?
बेटी चाहिए या घर ?
मैं ख़ामोशी में सोच रही हूं
क्या है मेरी पहचान ?
घर या मातृत्व ?



बचपन की धरोहर

आज भी याद आता है
वो मिटटी का घर-आंगन 
बारिश में खेलना ,
आपस में झगड़ना 
और नानाजी की गोद में 
सबसे बचकर छुपना ,
भुलाये नहीं भूलते वो दिन 
नानीमा का बनाया खाना 
जिसका स्वाद कहीं भी न मिला , 
वो निश्छल प्यार जो अब 
कहीं है ही नहीं , 
घर सब बड़े हो गए 
लेकिन मन संकीर्ण हो चले 
रिश्तों में मिठास के ,
सिर्फ पैसों की चमक रह गयी ,
छुट्टियां तो सिर्फ घरों या घूमने में 
सिमट चलीं , 
दूर गए वो दिन जब साथ बैठ ,
दाल भात खाने में अमृत सा स्वाद मिलता , 
आपसी झगड़ों में दुनिया का सबसे , 
अपूर्व सुख मिलता , 
डांट खाने में भी पिज़्ज़ा और बर्गर से 
कहीं ज्यादा मजा आता 
चोरी छिपे धूप में घूमने 
और नज़र बचाकर घर में आने में 
एक अजीब सा सुख मिलता 
जो अब कहीं है ही नहीं  
सिर्फ यादें हैं मन में ,
बीच बीच में एक ,
आंसुओं की धारा बनकर 
आखों से निकल पड़ती है  ,
उसमे भी छुपा मीठा मीठा
दर्द जो सिर्फ धरोहर बन गया है अब !!,  







न जाने क्यूं

न जाने क्यूं मन आज चटका
उदासी की झीनी चादर ओढ़े 
बरबस ही भर आईं आंखें ,
कभी कहीं कही सुनी 
बातों में छुपे शर मन 
विक्षत कर गए गहरे तक ,
एक सवाल भी उठा गए 
हम क्यों ये बोझ जिंदगी भर 
उठाये फिरें ? किसके लिए ?
कौन है अपना? कौन पराया ?
मन ही अपना नहीं फिर 
कैसा शिकवा ? 
छोटी सी दुनिया मन में 
मन भी तो मेरा रहा नहीं !
मन तो सबने तोड़ दिया , 
छीन लिया , विक्षत किया ,
आज भी मन में लेकिन 
है चाहत एक झलक की ,
एक झूठी मुस्कान की , 
एक झूठी उम्मीद की 
शायद सब कुछ बदले
मेरी दुनिया भी बदले 
वीरानी तब्दील हो आबादी में , 
शायद वो दिन यहीं कहीं हो 
मेरे इंतज़ार में !!


   

ज़िन्दगी की दौड़

मैंने फिर बचपन को पास से देखा
उस बचपन को मुस्कुराते देखा
उस मुस्कान में छिपी खुशी पर
खुद को कुर्बान होते देखा !!
बहुत अरसे के बाद आज खुशी को
अपने करीब देख जाना
खुशी कई जमाने बाद
उस मासूम मुस्कान में
हमें देख सकी !!
इस मुस्कान में
वो ताकत है जो
कही नहीं , कहीं नहीं !!
ज़माना गुजरा हमने खुद
का अक्स देखे
क्यों न जाने खुद से थोड़ी
नाराज़गी ,
नाराज़गी में थोड़ा
गम और
गम में थोड़ी
उदासी , इस उदासी ने
हमारा साथ न छोड़ा  ,
हमारा साया बन
हमें कहीं का न छोड़ा ,
वाह , खुशी हम तो
पहली नज़र में ही
तेरे गुलाम हो गए !!
ख़ुशी लेकिन तू है कहां ?
ख़ुशी ने कहा ,
अपने चारों ओर नज़र घुमा ,
हर पल हूं  मैं तुम्हारे पास ,
बहुत ही पास
तुम ही तो मुझे भूल गए ,
अपनी ज़िन्दगी की दौड़ में !!


सच्ची दोस्ती

आज मेरी दोस्त याद आयी
जिसने कभी न कुछ मांगा सिवा 
प्यार और समझ के। 
आज इस रंग बदलती दुनिया में 
कहां मिलते हैं दोस्त 
जो दिल की समझें ,
जाने मुझे ,
न मेरी हैसियत। 
पैसों भरा जेब न देखें 
देखें मेरा मन !
भगवान ने दी और छीन ली
मुझसे मेरी खुशी।
सुख दुःख बांटती एक दोस्त
मुझसे छिन गयी जिसकी
बस यादें ही हैं ,
यादों में ही ढूंढती हूं सुकून
शायद फिर हम मिलें और
बांटें अपने गम और ख़ुशी
मेरे इंतज़ार में वो भी
होगी मुझ सी आतुर
दोस्ती होती ही ऐसी है !!
नसीब होती है जिनको दोस्ती
वाकई वे खुशनसीब होते हैं
सच्ची दोस्ती है जो
हमारे गमों को भुला दे और
दुनिया को हमारे
कदमों में ला दे।
खुशियों की सौगात से
हमारी जिंदगी भर दे ,
न कोई भेद न कोई गम
बस हमारी दुनिया हो
और हमारी दोस्ती।