Monday, August 3, 2015

मेरी पहचान

आज तक मेरी उलझन ये नहीं
कि कैसे रहूं और क्या करूं ?
जब भी हो कुछ परेशानी
तो हर नज़र टिके मेरे चेहरे पर,
अनजान बनी मैं खामोश रहूं
और रहूं हमेशा ही खामोश!!
आंसूं बहें भी तब, जब न कोई जाने
मेरी उलझन मैं ही न जानूं !!
क्यों मुझे ये शाप मिला
क्यों मुझे अपना प्रतिरूप मिला ?
क्यों मेरा मातृत्व मुझसे छिना ?
क्या मां होना एक शाप है ?
क्या बेटी का जन्म अभिशाप है ?
मुझसे मेरी बेटी को छीन मुझे ही
धमकाया , घर में रहना हो तो
खामोशी ही बेहतर !!
फिर कैसे हमसे इतनी अपेक्षाएं ?
कैसे अभिनय की उम्मीद ?
जब दिल चाहा घर से निकाला
और जब चाहा बुला लिया ?
क्या अस्तित्व है मेरा ?
क्या पहचान है मेरी ?
क्या वजूद है मेरा ?
परिवार , समुदाय , बच्चे ,
कब तक  बनेंगे इस तरह मुजरिम ?
क्या स्त्री होना शाप है ?
सबने मुझसे छोटा सा सवाल किया
क्यों फिर बेटी को जन्म दिया ?
बेटी चाहिए या घर ?
मैं ख़ामोशी में सोच रही हूं
क्या है मेरी पहचान ?
घर या मातृत्व ?



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