Thursday, August 13, 2015

ढूंढती आंखें

खामोश स्तब्ध आंखों में हैं एक सवाल
जवाब ढूंढती आंखें ,
चुभतीं हैं गहरे तक लेकिन 
शब्द नहीं पास ,
कैसे दूं जवाब इन खामोश सवालों का
जिनमे है दर्द का समंदर ?
मेरे पिता कहां हैं ?
आंखों में है गहरा दर्द ,
अपमान का दुःख ,
जीने की चाह ,
मैं कैसे कहूं ? 
मैंने ही तो देखा था सपना 
तुझे अपनी बांहों में भरने का ,
तेरी आंखों से दुनिया देखने का ,
जो होतीं मेरी आंखें देखती मैं  ,
उस नाकामियत भरे चेहरे को ,
जिसने मुझे जीती लाश बनाया ,
आंखें नहीं , जीवन कैसे खोती ?
तब न सोचा इसका जवाब ,
आज धिक्कारता है मन !
तूने क्या किया ? है क्या तेरी खता ?
सुन्दर होना , स्त्री होना या आंखें ना होना ?
आंखें होतीं तो गंदगी दिखती 
है बेहतर कि मैं हूं निर्दोष 
काश , मैं तुझे बता पाती !!
हैं तेरी आंखें मेरा सपना , मेरा सच !!
मेरा अस्तित्व , मेरा जीवन !!

   

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