Thursday, August 6, 2015

गुमराह मन

किस चाह में गुमराह है तेरा मन
न होश किसी उसूल का ,
न ख्याल किसी बात का
इक चाह दौलत की !
दौड़ते दौड़ते थक जायेंगे पांव 
मन फिर भी चाहेगा और ,
इच्छा का अंत न जाना किसी ने
थोड़ी दूर चल और कहे ये मन ,
मन की सुन भागोगे कब तक ?
तेरी सीमा तू ही न जाने 
सुन मन की बात भूल न जाना ,
आखिर में सिर्फ कफ़न ही रहेगा 
हर चाहत से दूर बहुत दूर ,
क्यों ये भागम भाग , क्यों ये लड़ाई ?
क्यों मन में ये झंझावात ?
आखिर तेरी पहचान है क्या ?
क्या किया , कैसे जिया , 
यही रहेगा नाम !
फिर क्यों उठाये फिरे  
दुनिया के तमाम तामझाम ?
क्या है तेरा वो तू ही न जाने ,
क्यों बेवजह इतना परेशान ?
देना लेना ऊपर वाला जाने , 
ये बोझ है किसका हम ये भी न जाने ?
जीवन तो एक सपना है ,
कब हो पूरा , कोई न जाने ? 
जिंदगी थोड़ी चैन से जी लें !!





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