आज भी याद आता है
वो मिटटी का घर-आंगन
बारिश में खेलना ,
आपस में झगड़ना
और नानाजी की गोद में
सबसे बचकर छुपना ,
भुलाये नहीं भूलते वो दिन
नानीमा का बनाया खाना
जिसका स्वाद कहीं भी न मिला ,
वो निश्छल प्यार जो अब
कहीं है ही नहीं ,
घर सब बड़े हो गए
लेकिन मन संकीर्ण हो चले
रिश्तों में मिठास के ,
सिर्फ पैसों की चमक रह गयी ,
छुट्टियां तो सिर्फ घरों या घूमने में
सिमट चलीं ,
दूर गए वो दिन जब साथ बैठ ,
दाल भात खाने में अमृत सा स्वाद मिलता ,
आपसी झगड़ों में दुनिया का सबसे ,
अपूर्व सुख मिलता ,
डांट खाने में भी पिज़्ज़ा और बर्गर से
कहीं ज्यादा मजा आता
चोरी छिपे धूप में घूमने
और नज़र बचाकर घर में आने में
एक अजीब सा सुख मिलता
जो अब कहीं है ही नहीं
सिर्फ यादें हैं मन में ,
बीच बीच में एक ,
आंसुओं की धारा बनकर
आखों से निकल पड़ती है ,
उसमे भी छुपा मीठा मीठा
दर्द जो सिर्फ धरोहर बन गया है अब !!,
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