जिंदगी तेरी ये मजाल
तू मुझे तरसाये हर दिन
देखूं मैं तुझे चाहत भरी नज़र से,
भागता फिरूं ढूंढते तुझे
दर ब दर ठोकरें खाते
पूछूं तुझसे ये सवाल ,
क्या है मेरी खता और
क्यूं तू है इतनी जालिम ?
न पता है मां का और न
ही मेरा , कौन हूं मैं ,
क्या है मेरी पहचान ,
क्या एक नाम ही है पहचान ?
नाम में क्या रखा है ?
दूसरों को लूटने वालों से
मैं बेहतर नहीं ?
इंसानियत का नाम
बदनाम करने वालों से
मैं बेहतर नहीं ?
लोगों को गुमराह करने
तैयार रहने वालों से
मैं बेहतर नहीं ?
नही जरूरत एक नाम की
जो बदनाम हो , गुमनाम हो ,
बेहतर है मेरी अपनी पहचान
मेरी तदबीर हो मेरी पहचान
मेरी तदबीर हो मेरी पहचान
न किसी से डरूं , न ही लड़ूं
मेरी पहचान न होगी गुलाम !
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