Tuesday, August 4, 2015

जिंदगी तेरी ये मजाल

जिंदगी तेरी ये मजाल
तू मुझे तरसाये हर दिन 
देखूं मैं तुझे चाहत भरी नज़र से,
भागता फिरूं ढूंढते तुझे 
दर ब दर ठोकरें खाते 
पूछूं तुझसे ये सवाल ,
क्या है मेरी खता और 
क्यूं तू है इतनी जालिम ?
न पता है मां का और न 
ही मेरा , कौन हूं मैं , 
क्या है मेरी पहचान ,
क्या एक नाम ही है पहचान ?
नाम में क्या रखा है ?
दूसरों को लूटने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ?
इंसानियत का नाम  
बदनाम करने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ? 
लोगों को गुमराह करने 
तैयार रहने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ?
नही जरूरत एक नाम की 
जो बदनाम हो , गुमनाम हो , 
बेहतर है मेरी अपनी पहचान
मेरी तदबीर हो मेरी पहचान
न किसी से डरूं , न ही लड़ूं 
मेरी पहचान न होगी गुलाम !                                                                        


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