Monday, August 3, 2015

छलकी आंखें

आंखें छलक छलक जातीं हैं
जब भी तेरा प्यार याद आता है ,
छलकती आंखों के आंसूं भी
सूख जाते है इंतज़ार में ,
लेकिन तेरी एक झलक के लिए
मैं तरसता ही रह जाता हूं ,
क्यों ये जिद , क्यों ये दिखावा
जो हर सरहद के पार ,
जाने को तैयार है लेकिन
सरहदें ही नज़र नहीं आतीं ,
सिर्फ हमारी जिद ही अचल
हमारी सहिष्णुता का ,
इम्तेहान लेती है !!
ताज्जुब है कि तू मां है मेरी
और इस हद तक जाने की ,
हिम्मत है तेरी ,
कि मेरी पुकार
तुझ तक नहीं जाती !!
सिर्फ एक छोटी सी
तड़प है दिल में ,
जो सिर्फ तेरे प्यार के सिवा कुछ न जानती , 
क्यों ये दिल इतना नादान है ?
भूल जाता है ये बात कि
हर रिश्ता आज सिर्फ , 
बेजान बोझ सा बन चुका है
फिर कैसे पहुंचेगी 
तेरी आवाज वहां तक ,
जहां सिर्फ प्यार के अलावा , 
सब कुछ है !!
मातृत्व भी एक बोझ सा बन चुका है , 
मां मैंने तुझे समझने की
एक बेहद ही नाकाम कोशिश की ,
तुम जीत गयीं और हार गया मैं , 
मां तुम भी मेरी सहनशीलता का
इम्तेहान न लो , 
मैं तो बिखरा हूं जहां तक
तेरे पांव जाते हैं , 
कोई भी कतरा तेरे पांवों को न दुखाये ,
जो भी हो है तो तू मेरी मां ना !!            




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