मेरे अपने हैं मेरे सपने जो
कभी पूरे होने के इंतज़ार में
दम लेते हैं घुट घुट कर
मगर जीते हैं।
दंग हैं दुनिया के बदलते रंग
देख जो अपनों को भी अपना
कहने से डरते हैं।
डर है कि मैं प्यार से
लूटा न जाऊं ,
डर है कि मैं प्यार से
बिगड़ न जाऊं ,
डर है कि रिश्ते
मेरे सच्चे न हों जायें ,
डर है कि ममता
जीत न जाये ,
डर है कि बीवी
मुझे छोड़ न जाए ,
सारे डर मन में छिपाए
मैं एक इंसान होने का
झूठा दम भरता हूं ,
सबसे आंखें मिलाने से भी
डरता हूं ,
कहीं सच न खुल जाये और
जाहिर न हो जाए ,
मैं भी तरसता हूं
प्यार के लिए और
मेरा दिल भी धड़कता है
प्यार के लिए ,
सिर्फ एक डर कि
मैं कमजोर न बन जाऊं।
मैं खुद को सबसे छुपाये
हंसते हंसते कभी कभी
सच ही में रो लेता हूं
मेरे आंसूं भी मेरी हंसी
में डर से छिपा लेता हूं
कोई मुझे शायद कभी
सही सही समझे
शायद मेरे भी सपने भी
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