अक्सर ही मैंने रिश्तों को
जीते जी मरते देखा है,
जीते जी मरते देखा है,
मरने पर लोगों को
बेवजह रोते देखा है।
बेवजह रोते देखा है।
जीते जी जो एक दूसरे की
कदर ही नहीं करते ,
कदर ही नहीं करते ,
उनको भी दिल खोलकर
झूठी बातें कहते देखा है।
झूठी बातें कहते देखा है।
क्यूं लोग इस कदर
झूठ को ओढ़े फिरते हैं,
झूठ को ओढ़े फिरते हैं,
अक्सर ही अपने दिल में
इस सवाल को घूमते देखा है।
इस सवाल को घूमते देखा है।
हमने तो आज तक रिश्तों को
बदलते समय के साथ ,
बदलते समय के साथ ,
बदलते बदलते मरते ही देखा है।
इंसान को भगवान ने
बख्शी एक अमानत ,
बख्शी एक अमानत ,
लेकिन हमने सरेआम
इस अमानत को लुटते देखा है।
इस अमानत को लुटते देखा है।
जो सर पर छत और
दो जून खाने को तरसते हैं ,
दो जून खाने को तरसते हैं ,
अक्सर ही उनके
मन में सच्चा प्यार देखा है।
मन में सच्चा प्यार देखा है।
खुदा तूने क्यों ये दुनिया बनाई ,
सब कुछ होते भी लोगों को
झूठी दुनिया में जीते देखा है।
झूठी दुनिया में जीते देखा है।
रिश्ते जो ख़ुशी का उद्गम होते हैं ,
उनको सरेआम लोगों को
बेनाम करते देखा है।
बेनाम करते देखा है।
हमसे तो बेहतर वो चंद होते है ,
जो कम से कम
रिश्तों का झूठा दम तो नहीं भरते।
रिश्तों का झूठा दम तो नहीं भरते।
जिन किसी हाथों ने उनको संवारा ,
उन हाथों को जीते जी
वो आबाद करते हैं।
वो आबाद करते हैं।
काश हम सीख पाते रिश्तों को बनाना ,
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