Tuesday, August 4, 2015

प्यासा मन

मेरे चेहरे पर आंखें टिका
जाने क्या सोच रही!!
आंखों में चमक नहीं 
होठों पर मुस्कान नहीं 
आंखों में जान नहीं !
मुझे क्यों ये खींचे अपनी ओर 
मुझसे क्या रिश्ता है बनता 
क्यों मुझे एक बंधन खींचे ?
दूर दूर तक कोई नहीं 
ये अकेली खड़ी किसलिए ?
मेरे पांव थम गए , 
आंखें नम हों चलीं 
थामें उसके छोटे हाथ  
खींचा उसको अपने पास 
बैठी रही खामोश 
उसे ज़रा भी न था होश 
कौन है ये जो मुझे बुलाये ?
क्या हुआ मुझे न जाने 
चल पड़ा मैं उठाये 
तेज कदम जैसे कोई 
रोक लेगा मुझे 
घर पहुंचा , देखा उसे  
सूखे होंठ , आंख नम , 
भूखी थी निगाहें, प्यासा मन 
आज मुझे 
भूले बिसरे दिन
याद हो चले जब
मैं निकला था 
किसे खोजने न जाने!
गुम गया इस दुनिया में 
अपनी पहचान बनाने ,
आज इन आंखों में 
खुद को देखा शायद !!
दिल में उमड रहा प्यार 
अपने बचपन को न सही 
इसे संवार लूं शायद !!
मुझे एक बेटी मिली 
दुःख सुख में साझा लेने 
मेरी अपनी दुनिया 
ममता से परिपूर्ण बनी !!


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