Thursday, December 31, 2015

I Wish You

This  year has stepped in silently
We welcome with grandeur
The love and dreams cherished
Our heart thumping with a sweet pain!
Expectations climbing high
Slowly our heart aches but
For the craving and longings
Remain the same!
Missed & gained & Learned!
How we dream to raise high
How much love we share
How close we feel to each other
How much we erase past
How long we strive to gain
How much we implement efforts
DECIDE our life
throughout the year
progress with head held HIGH
Self Esteem & confidence
At its peek,
I wish all your tears erased
Smile bright and be the SAME!!

Wednesday, December 30, 2015

क्यों इतने बंधन ?

तेरी आबरू पर इतने जश्न ?
गलती से ही सही कैसे हो ये सच ?
कभी कपड़ों तो कभी समय पर पाबंदी
इज्जत से जीने क्यों इतने बंधन ?
बचपन से बुढ़ापे तक कितने भार ढोएगी ?
किसमें है दम जो उठाये इतने जिम्मे ?
पूछ मेरे जीने का मकसद
जिंदगी कर दी कुर्बान तेरे खातिर
एक आदमी को आदमी बनाना
क्या इतना आसान होता है !!

Tuesday, December 29, 2015

O Woman !!

The agony makes blood freeze
Anger and hatred mingled
Force automatically mingled with blood
To crush the culprits person
But if we could hang them on the cross roads!
Even a baby is not exception!!
So agonizing yet common
Why don't cut them off?
Roaming free in disguise
These monsters are really Human???
Don't they have any woman in homes?
They do the same with them?
If dare not to think the same
How dare they touch one?
If we united could burn them alive,
Only our agonies can be light.
Woman is empowering ,
Losing themselves to
Cold Blooded death
WHY, Why , why ?


Saturday, December 12, 2015

ख़याल आया

जमाना गुजर गया आज ख़याल आया
खुद हम क्या चाहते हैं ?
बचपन पढ़ाई में , फिर कमाई में ,
जवानी कमाने में और फिर जिम्मेदारियों मे,
बच्चों को पालने में , उनकी जिंदगी संवारने में !

जब जिंदगी का पड़ाव बदले तब रहा सिर्फ गम 
मैंने क्या किया अपने लिए ?
जीवन है एक सपना क्यों न जियें 
जी भरकर इसे ?

सिर्फ कमाने और खाने में क्यों जाया करें ?
खुद जियो और जीने दो 
उम्मीदों को कुछ कम करो 
खुशी का प्याला छलक छलक जाएगा !



Thursday, December 10, 2015

अफ़सोस

अब की बार जरूर साड़ी लूंगा
जब भी घर जाता हूं कोई खर्च आड़े आता
मन की आस मन में ही रह जाती।
कितने ही दिन हो चले आये
हाथ में कुछ बचता ही नहीं ।
थोड़े रुपये हों तो कपडे खरीदूं
अगली बार कपड़ों के साथ ही जाना है।
खुश, काम के लिए तैयार हुआ
बाहर देखा भीड़ थी ,क्या हुआ ?
पड़ोस में मौत हुयी
देखा तो अफ़सोस हुआ ,
मौत पर नहीं जीने पर ,
एक तरफ महंगे कफ़न
दूसरी तरफ पहनने भी कपडे नहीं
वाह रे वाह तूने मुझे बख्शी
जिंदगी भी अजीब चीज है !!
काश मुझे भी ये जिंदगी मिलती !!


Wednesday, December 9, 2015

प्यार भरी सौगात

खिड़की के पास बैठी ,
देखती डाकिये को हर दिन 
शायद आज कोई लिखे 
मुझे भी एक चिठ्ठी !
हर दिन करती इंतज़ार 
एक दिन पूछ ही लिया ,
सिर्फ मुझे कुछ देते ही नहीं 
क्या मुझे कोई भी 
नहीं करता प्यार  ?
उस दिन के बाद ,
हर दूसरे दिन आती 
प्यार भरी सौगात लिए 
मेरे भी नाम एक चिठ्ठी !
मैं भी बड़ी हो चली थी 
समझने भी लगी थी ,
कुछ दिनों न डाकिया आये 
और न ही कोई चिठ्ठी !
माथा ठनका , क्या हुआ ?
पता चला डाकिये चाचा 
चल बसे चुपचाप !
फिर वही इंतज़ार 
पूछा तब जाना ये राज़ ,
डाकिये चाचा ही लिखते थे 
मुझे रात में प्यार भरे खत !
मैं चल नहीं सकती थी 
मेरी तो दुनिया ही थी 
मेरी छोटी सी खिड़की !
और उसमे प्यार की 
सौगात लाते थे 
मेरे प्यारे डाकिये चाचा !!


मेरा बचपन दे दो न !

आंखें चुराते दबे पांव आयी मेरे आंगन एक लहर सी ,
खुशी मिली और थोड़ा सा डर भी ,
क्यों ये बचपन बिना बताये भाग चला है ?
सब कुछ ही बदला-बदला सा लग रहा ,
आजादी कम , खेलना कम , खिलखिलाना गुम ,
क्यों ये मेरा बचपन मुझसे है दूर भागे ?
सबकी बातें बदलीं , भाव भी बदले ,
मैं भी तो बदली हूं या बदल रहे हैं सब !
क्यों ये मेरा अल्हड़पन दूर चला गया ?
ना चाहूं ये मैं , मुझे मेरा बचपन दे दो !
मेरी आजादी मुझे वापिस दे दो ना !
क्यों ये मेरा बचपन छीन रहे हैं ?

Saturday, December 5, 2015

खुशी

बिना किसी आहट आयी खुशी
दबे पांव है विराजी खुशी
सबके चेहरों का रंग है बदले
सबके मन में हैं सपने रंगीन ,
हर तरफ उल्लास है छाया
काफी दिनों के बाद जैसे
कोई मेहमान हो आया ,
मेरा मन मेरे काबू में नहीं
क्या करूं ना जानूं अभी
कैसे मैं करूं इजहार इसे ,
खुशी है जो लाई मेरी
दुलारी बिटिया मुझे !!


कुछ भी नहीं भाता बिना तुम्हारे !

बचपन में पढ़ी एक कहानी याद आयी
बैठी जब लगी सोचने 
बचपन सा सुख है कहां ? 
बिना मां के प्यार के सुख है कहां ?
एक बालक चुराकर पैसे पिता के जेब से ,
ले आया एक पतंग 
चाहता था भेजना मां को एक चिठ्ठी !!
लंबा मांजा बांधकर , लिखी चिठ्ठी ,
मां बिना तेरे कुछ भी नहीं है भाता  
सब कहते तुम ऊपर भगवान के पास हो  ,
मिलते ही चिठ्ठी तुम चले आना ,
मुझे कुछ भी नहीं भाता बिना तुम्हारे !
पापा मुझपर गुस्सा है उतारे ,
मुझे दुलारो न सही मां साथ होना बस   
बस जल्द से जल्द चली आना !
मां तेरे बिना कुछ भी नहीं यहां ,
पापा देर गए हैं आते ,
ना ही कोई बात और न ही दुलार ,
वो तो सिर्फ तू ही जाने मां !
क्यों तू मुझे सोता छोड़ चली गयी मां ?
ये चिठ्ठी छुपकर हूं लिखता 
कोई न जाने मैंने चुराए पैसे ,
दूसरा तो कोई उतने ऊपर मिलने तुझे 
आ नहीं सकता न मां !!

पिता ने ढूंढें पैसे 
और बुला भेजा बेटे को 
कहां हैं पैसे , क्यों चुराए पैसे ?
बेतहाशा मारकर जब गए थक 
बैठे रहे दिल थामकर कुछ देर ,
जब हुयीं सिसकियां ख़त्म 
एक पतंग पर लिखी चिठ्ठी ,
"मां तुम जल्दी आ जाओ न मां ,
मैं इंतज़ार करूंगा मां ,
मां तुम आओगी न ?"
पढ़कर मन भर आया और दुःख भी ,
हाय मैंने ये क्या कर डाला ?
एक मासूम को इस तरह 
जीते जी मार डाला ?
आंखें भरी आंसुओं से 
अधमरे बेटे को गले से लगाया !




Tuesday, December 1, 2015

काली घनी जुल्फें

काली घनी जुल्फें तेरी
मेरे चेहरे पर जब छायीं
अनजाना सा एक नशा
हो गया मैं तेरा दीवाना
अब तो मुझे शायद ही
खुदा बचा पाये
हम तो गिर पड़े हैं
एक अंधेरे में
जहां सिर्फ तुम ही हो !



आखिर कब तक ?

सच और झूठ के मुखौटे आखिर कब तक ?
इंसान की कद्र होगी उसके पैसों से कब तक ?
रिश्तों की खुशबू ज़िंदा रहेगी लेकिन 
उसकी परवाह करना लोग समझेंगे कब तक ?
क्यों मैं इन दफनाये रिश्तों की सिसकियों से 
डरता फिरता हूं न जाने 
अक्सर ही खुद को ढूंढता फिरता हूं ,
इन सर्द लोगों की भीड़ में 
अपने दर्द सीने में छुपाये नकली मुस्कान 
अपने चेहरे पर चिपकाए आखिर 
खुद से ही लड़ता रहूंगा कब तक ? 
ऐ खुदा तूने मुझे इंसान बनाकर 
सजा दी या जिंदगी बख्शी ,
मैं कितने समय ये भार दिल में उठाये 
जीते जी मरता रहूंगा और
ये सिलसिला चलता रहेगा कब तक?
मैं भी तो एक जीता-जागता इंसान हूं 
ये दुनिया मुझसे जीने का हक़ 
आखिर छीनती रहेगी कब तक ??? 


दूर कहीं छोड़ आया अपने सपने सारे

एकांत मन के कितने ही सवाल
अनसुना कर देता हूं अक्सर ,
मन भी पलटकर देखना न चाहे 
हम भी पुराने ख़याल दिल से निकाले ,
चलते जा रहे हैं आगे ही आगे 
पलटकर देखने चंद यादें भी तो नहीं ,
दूर कहीं छोड़ आया अपने सपने सारे !
चैन नहीं है सोते-जागते ,
दिल को सुकून नहीं मिलता 
मन भी कभी है छटपटाता !
क्या और कहां भूला न जानू 
अतीत से हूं डरता मैं अनजाने ,
उठ बैठता हूं पसीने पसीने होकर
अचानक ही रातों को !
चैन से सोती है मेरी अर्धांगिनी 
न जाने क्यों मन है उचटता  ,
मेरा कुछ भी तो खोया नहीं 
है मुझे पूरा ख़याल ,
अचानक आज हुआ एहसास
मैंने अपनों को न ही प्यार दिया
और न ही उनका प्यार लिया ,
मेरी जिंदगी आज तक
रही अधूरी ही और शायद ,
अधूरी ही रह जाये मरुस्थल सी
मैंने तो खुद को ही भुला दिया
कुछ लोगों की खुशियों की खातिर !!


Saturday, November 28, 2015

प्रगति

बदलते रिश्तों को देख आंखे भरने से
कुछ बदलता तो नहीं ,
यह है सहज ,
तो क्या हम ही भूल चुके 
बदलाव को सहजता से 
स्वीकार कर साथ चलना ,
हर चीज में बदलाव आना तो है 
प्रगति की एक झलक !

Thursday, November 26, 2015

नकली बन चली दुनिया

नकली बन चली दुनिया में  मशगूल
जब कभी पलट कर देखे तो
सिर्फ रेगिस्तान सा नज़र आया !
मंजर भी नहीं बदला और नज़ारे
हमें बदलता देख जैसे भूल गए
इस समय और उस समय में
यही तो है न अंतर !!

Monday, November 23, 2015

शत शत नमन

नींद उड़ा दी गोली ने ,
आंसू भर दी आंखों में
सिर्फ चिंता है जहन में ,
लेकिन ये सपूत हैं
जूझते दिन रात !
हमारे ख़याल में
खुद नींद न सो
सुलाते हैं हमें चैन से !
धन्य हैं ये पुत्र जो
जीते ही हैं हमारे लिए
शत शत नमन इन
वीरों को !!

बच्चों का संग

मन ढूंढता है सुकून ,
पहले थी चिंता अपनों की ,
अब न रही फ़िक्र कोई ,
मन सिर्फ चाहता
बच्चों का संग !
हंसते खेलते नन्हे
फ़रिश्ते हैं जिनकी
पहुंच में सारी दुनिया !
बैठे रहे अकेले
दिल को तसल्ली देते
जैसे ही आ मिले
इन फरिश्तों ने
भर दी खुशी से
मेरी दुनिया !
मुझे जरूरत है
सिर्फ इन चंद
अजीज लम्हों की अब !!

मां की धड़कन


अबोध मन ,
ढूंढता चिर परिचित ,
मां की धड़कन और स्पर्श ,
लेकिन वो कही नहीं फिर ,
ढूंढने का नाकाम प्रयास ,
             
बदला चिल्लाहट में और
चंद लम्हों में लौट आयी ,
मां की धड़कन पास !
जाना मासूम मन ने
चिल्लाहट में कितनी है
ताकत !!
अब जब भी जो चाहा
न मिला तो जान लिया
कैसे मिलेगा तुरंत बिना
किये कोई भी सवाल ,
बस थोड़ी सी चिल्लाहट
और सभी असहाय से
बुलायें मां को !!

Saturday, October 24, 2015

जीने के संघर्ष में

बड़े दिनों के बाद खुद को पहचाना
अजीब लेकिन सच
जिंदगी की भागमभाग में
भूल चली खुद को ,
आज जब आइना देखा
स्तब्ध रह गयी  !
कहां खो चुकी मैं अपने सपने ?
बचपन में सोचा थोड़े दिन ,
जब हुए बड़े तो थोड़े दिन और ,
मिली नौकरी , आईं जिम्मेदारी
कुछ दिन और सब्र कर लें ,
फिर शादी , बच्चे और परिवार ,
न जाने कैसे सालों बाद
याद आये मेरे भी सपने थे !
पढ़ना , नौकरी , परिवार
यही था मेरा संसार।
है कोई पहचान मेरी ?
जीने के संघर्ष में
मैं भूल ही गई
मेरी अपनी भी पहचान है !
आज जब उठा सवाल
घर के अलावा तुम्हे
है कुछ पता ?
तब ख्याल आया
मैंने भी देखे थे
सुनहरे सपने !!


Friday, October 23, 2015

नारी के रूप


एक नारी के कितने रूप ?
बेटी , बहन , दोस्त , प्रेमिका ,
पत्नी , बहू , मां , भाभी , ननद ,
मामी , चाची , बुआ , मौसी !
हर रिश्ते में एक नयी झलक !
प्यार , कर्तव्य , समझ और
सामंजस्य का ही तो
नाम है नारी !
टूटते हुए इंसान का
नया विश्वास ,
बिगड़ते रिश्तों को
संवारती देती जान ,
आसानी से बदलती
सब कुछ मानो जादू  ,
हंसती खेलती सबकी जान
प्यार की डोर से बांधे ,
न हो घर लगे सुनसान !
हवा की तरह हल्की
पानी की तरह जरूरी ,
सांसों की तरह ,
फूलों की ताजगी से भरी
तेरी तारीफ़ के लिए
शब्द ही नहीं पास ,
सारांश यही कि नारी
ही परिवार की शान !!









अपनेपन का एहसास

अक्सर ही तेरी आंखों में मैंने
सपनो की झलक देखी 
मेरे दर्द , सुख , दुःख 
सबका साझा लेती 
मौन उपस्थिति मुझे 
प्रेरणा और तृप्ति देती। 
मेरे साथ होने का 
एहसास ही मेरी 
अभिव्यक्ति को जैसे 
जीवन और सांस देती। 
अपने जो हैं पराये 
पराये जो हैं अपने 
दोनों ही मुझे लगते 
बिलकुल अपने ! 
हम ही तो ढूंढते हैं 
अंधेरे में उजाले और 
उजाले में भी अंधेरे 
मन की लुकाछिपी 
कौन समझ पाया ! 
शत शत नमन उन सबको 
जिन्होंने मुझे अपना 
होने का एहसास तो दिलाया !






Thursday, October 22, 2015

विश्वास जगाने

ऐ जिंदगी मैं ढूंढता हो हताश तुझे
क्या है नहीं मेरी परवाह तुझे ?
तूने ही तो बख्शी ये जिंदगी मुझे
क्यों ये तड़प और बेरुखी दी मुझे ?
तरसता दिन रात चैन से जीने
क्या मेरी खता है जीना ?
तेरी उम्मीदों को मैंने समझा
क्यों तू न समझती मुझे बता ?
खुद के लिए नहीं मैं जीता ,
किसीके सूखे ओठों पर हंसी लाने ,
दो समय उनको खिलाने ,
कुछ पढा लिखाकर इंसान बनाने ,
जिंदगी के उनको भी अर्थ समझाने ,
शमशान सी जिंदगी मे बहार लाने ,
अपने जैसी उनको भी पहचान दिलाने ,
खाली सी जिंदगी में कई पड़ाव लाने ,
अपमान भरे जीवन में इज्जत लाने ,
अपने जीवन में मुस्कान लाने ,
औरों के दुःख भुलाने की औकात लाने ,
बंजर हुयी जिंदगी में खुशियां लाने ,
उनको भी हक़ है जीने का
ये विश्वास मृत मन में जगाने ,
बख्श मुझे और कुछ दिन
खुद को एक इंसान होने का
मतलब समझाने
ये सब कर दिखाने !!


My Dreams

We one in hardships
As comes breeze but erase mind
It's a way of testing our trueself ,
If conquer meet the best
Not then worry for us ,
Seen ignoring eyes, hollow laugh
Twisting smiles and contempt ,
Am waiting still wondering
What am and why such times !
Know his ways differ and
Relax in the dark covering
Why do I live and long for ?
A day comes when I see
My world full of smiles only
On the dry lips of destitute
Shining bright life filled eyes !
Me mothering the
Gifted ones of fate!
Changing their smiles
Try to find solace
From within where lies
Ruins of my dark gone days
Waiting with still open eyes!!

Wednesday, October 21, 2015

मंदिर और मस्जिद

 बड़े दिनों के बाद आज मन फिर निकल पड़ा
अनजानी राहों पर जाने पहचाने लोग
आंखें चुराते डर से कहीं हमसे न आ मिलें
परेशानियों से घिरा नयी जगह
मैं फिरता मारा यहां वहां
कोई तो होगा मददगार
इतनी बड़ी दुनिया में मेरे लिए
कोई न कोई , कहीं न कहीं
जरूर थामेगा मेरे हाथ
दिन , महीने बने और मैं
नाकामियत के अंधेरे में
गुमनाम होने का डर  ,
एक दिन अचानक मिले
एक सज्जन ने
थाम मेरे हाथ कहा
देखें हैं मैंने मुश्किल के दिन,
न पलटकर देखना कभी,
जब दिखे कोई मजबूर
जरूर पलटकर देखना ,
मंदिर और मस्जिद में
नहीं है भगवान ,
मिलोगे अक्सर ही जीते जागते
इंसानो से , उनमे ही है भगवान .
आज भी मन करता है स्मरण उनका


Tuesday, October 20, 2015

आधुनिक मां

तेजी से सीढ़ियां चढ़ते कदम
सिर से पांव तक आधुनिक ,
आंखों पर धूप का चश्मा
जींस पैंट और शर्ट
मैं दंग रह गयी ,
पीठ पर एक बेल्ट से
बंधे मजबूत बैग में
विराजमान छोटे से कन्हैया
अम्मा को बांधे छोटे से
हाथों की मजबूत पकड़ ,
आंखें घुमाकर नजारा
देखते मजा ले रहे ,
दोनों हाथों में वजन
आधुनिक मां का स्वरुप,
मुझे शक्ति के लिए
स्त्री का प्रतिरूप लगा !



Monday, October 19, 2015

क्यों ये आंसू ?

एक मां को सिसकते देख
सवाल उठा मन में 
क्यों ये आंसू ?
बच्चे की आस में 
या टूटते रिश्तों 
को दफ़न करते
दर्द को छुपाने 

के नाकाम प्रयास में !



एक किसान की कहानी

आज जब मैंने पूछा एक बालक से
क्या करते हैं पिताजी
उसने कुछ सकुचाते कहा
किसान हैं वो ,
उसके स्वर में दर्द जाहिर था
मैंने किया सवाल
क्यों इतनी उदासी बेटे ?
कहो न गर्व से किसान हैं मेरे पिता !
उसने मुझे देख कहा
आकर देखिये हमारे घर
सिर्फ कटाई होते समय
खाना होता है नसीब
बाकी पूरे साल तो हमें दो जून
खाना भी नसीब न होता
कैसे मैं गर्व से कहूं
मेरे पिता एक किसान हैं ?
इतने नादान बालक को समझ है                                                                            
वो दर्द क्यों हम न समझते !
सच ही तो है आज भी
किसान के घर में समृद्धि
क्या दीवाली और नव वर्ष
की सौगातें लाती हैं ?
कैसे हम गर्व से कृषि प्रधान
राष्ट्र का दम भरते हैं?

Harmony

Happened to visit a home
Full of live moments
Mostly uncommon
A close knit family
Thrilled, mesmerized
I observed
Rewinding old days
Tears welled up
Know not why
I got up with a heart
Full of contentment
Where is treasure ?
Found in such homes
Full of harmony and love
Rarity nowadays!!







Sunday, October 11, 2015

जीने की आस

जीते जी मरते हैं कितने ही अक्सर
मरते हैं जीने को लोग अक्सर 
जिंदगी रास नहीं आती सबको 
जिंदगी जीने की आस नहीं सबको 
लेकिन ज़िंदगी जीना ही तो है 
दूसरों की खातिर ही सही !
बदलते रिश्ते और जरूरतों 
के गुलाम हैं हम और 
जिंदगी हमें हर पड़ाव पर 
देती है सवाल  जीने का !
कैसे पार करें ये दरिया 
है यही मन की सिहरन 
है हिम्मत मन में
पार कर ही लेंगे हम 
है उम्मीद हमें खुद से 
जीने की खातिर 
कुछ तो कर दिखायें हम !
लोग आसमान को छू लेते हैं 
हम तो सिर्फ जीना चाहते हैं !!

Saturday, October 10, 2015

Return Me

Loaded with heaviness
I breathe slowly
Thinking of the plight
Whom I would cuddle ?
Why such a tragic happening
In such tender age
My hands groped in dark
For the familiar touch !
Oh God, why so unkind?
For what punishing me?
Just a chance to live
Give O Almighty!
Hear my woes and
Come to me !
Your child is at stake
Show your love!
Hold me close
Give me life back
Take my life
Return my angel again!
Baby opens eyes
Mother breathes last
Prayers are heard!!

Saturday, October 3, 2015

My Heart Throbs

Recalling departed beloved
A fulfillment fills mind
As the reality strikes
Mind becomes numb !
Losing loved ones is
Probably biggest blow
Shattering whole person
Making ourselves cripple !
Mind turning blank
Groping emotionally
Gaining inch by inch
Our lost self pains lot !
None knows the reality
I become a baby again
Searching true love
Lost in the oblivion !
Hoping to cuddle in
The warm hug once
To feel secure and safe
Facing life zestfully !



Monday, September 28, 2015

Pride

Today ,
Brought a smile of contentment
On recalling how I received the
Bundle of joys with trembling hands
So delicate and fragile !
With thousands clouds of unseen fears
Held close and felt the beats !
My heart thumped and throbbed
A pain but of great joy covered
My whole being with a deep
Love and pride of
Becoming a complete woman
Motherhood !!
A great thing to experience!!


Wednesday, September 23, 2015

याद आता है

याद आता है बचपन में
दौड़ते बादलों का पीछा करना ,
चंदा भी चलता साथ हमारे
बादलों में ढूंढते इठलाते आकार,
चांद भी लगता दोस्त हमारा
तारे मुस्कुराते से लगते ,
अनगिनत तारों को गिनते
न जाने कब सो जाते और
सुबह डिब्बे में बंद जुगनू ढूंढते !
फिर सुनते एक कहानी
जो बिलकुल सच लगती ,
परी आकर हमें मरहम
लगाती, जुगनू को छोड़ती
सबको ढेर सारा प्यार देकर
सुबह गायब हो जाती !
रात जागकर बैठना
परी को देखने की लालसा में ,
निराश हो सो जाना और सुबह
आंखें फैलाकर ढूंढना ,
आज भी याद आता है
बचपन जो दूर बहुत दूर
चला गया हमसे !
आज भी मन में है धरोहर  !

Monday, September 21, 2015

प्यार

आज मौन बैठी सोच रही
हम क्यों हैं ऐसे बेदर्द
गरीब , बूढ़े , अपंग ,
सबसे पेश आते एक तरह !
आज न उम्र न रिश्ते हैं
इज्जत के हकदार
क्यों हम इतने अंधे
बन चले ?
पैसों ने हमें अंधा बना
जानवर से भी बदतर
कर दिया !
आंखों पर एक चश्मा है
समता का !
सिर्फ दिखते हैं
पैसों की चमक वाले
न मां , न बहन , न भाई
रिश्ते ही भूल चुके
हमसे बेहतर हैं वो
जो अकेले ही पैदा होते
कम से कम अपने अकेलेपन
से दूर जा सबसे प्यार
तो जताते हैं !!

Sunday, September 20, 2015

झूठ और सच


रिश्तों को झूठ और सच का
फर्क नहीं मालूम
लेकिन आंखें जानतीं हैं
दिल और जुबां के भेद !
सच्चे रंग और झूठी हंसी
रही सही कसर छूकर
जान लें वरना ,
आंखों के बिना कैसे
रिश्तों की गहराई  
जान लेतें हैं  
सिर्फ चंद लम्हों में  !      

Friday, September 18, 2015

जब भी ये मन

जब भी ये मन पलटता है पन्ने
कुछ न कुछ ढूंढता है
यादों की दुनिया में ,
उदासी की चादर ओढ़े रिश्ते
एक दूसरे से नैन चुराते
अपनी दुनिया में मशगूल !
मुश्किलें जब पास आतीं
खुद ब खुद ढूंढते
रिश्तों की नजदीकियों को
दिल को थोड़ा सुकून देने !
हम चाहे जितना ही
आगे निकलें जिंदगी में
लेकिन रिश्तों से कटना है
जीते जी मरने जैसा !




Thursday, September 3, 2015

एक जमाना हुआ

जमाना  हुआ  मुस्कुराये इन्हें
ओंठों पर सूखी सी  परत
मन मुरझाया सा
वजह अनजानी है पर
दर्द तो पहचाना सा है !

अक्सर ही मिल जाते हैं
आंखों की नमी छिपाते हमें
पराये जो अपने से लगते हैं
शायद उनके दर्द में हम
अपनी झलक पाते हैं !

अंधाधुंध में लगें हैं सब
क्या खोज रहें न जानें
कोई खुशी तो कोई सुख
जाने कहां जा छुपे हैं
दूर बहुत दूर !

रिश्तों में अपनापन
और मन में सच्चा प्यार
है या नहीं पता नहीं
सब परतों में छिप चले हैं
ज़िन्दगी के नकलीपन में !

थके कदम जब पास आयें
तो बढ़कर थामने हाथ नहीं
दूर कहीं बच्चों की
मुस्कान देखने कोई नहीं !

परिवारों का बिखराव कहीं
दूर ले चला है इंसानियत से
बच्चों को बचपन से ,
ज़िन्दगी से दूर हम चल रहे
कहां और क्यों
कोई न जाने !!










Sunday, August 16, 2015

कामयाबी

दिल डर-डर कर है परेशान
जमाने भर से है गुलाम ,
औरों का किये है ख्याल
परेशान दिन रात
क्यों मैं सबसे इतना डरूं ?
किसका डर ? कौन देगा साथ ?
परेशानी में तो कोई नहीं आता ,
फिर क्यों ये डर ?
ये डर है या नाकामी मेरी
जो मुझे आगे बढ़ने न दे ?
सोचा तो पाया कोई भी मेरा नहीं
सिवा मेरी हिम्मत के
जो जीतूं तो सब हैं साथ
हारा तो खड़ा अकेला !!
फिर क्यों इतना लिहाज
किसका जो निंदा ही करें ?
समय पड़ने पर भागें दूर ?
इनसे तो भले हैं अनजान
जो प्यार से जवाब तो देते हैं !
मेरी कमजोरी है कि मैं खुद
को छोड़ भागता हूं
ढूंढता औरों को ,
एक डर मन में छुपाये
कहीं नाकाम न हो जाऊं !
नाकामी ही तो लाती है
कामयाबी पास
मैं भूला और नाकामी ने
मुझे अपना बनाया !
अब है पूरा विश्वास
अपनी सच्ची कामयाबी का !!


Saturday, August 15, 2015

मेरी उलझन

जब भी दिल धड़कता है ,
एक आहट सी सुनती हूं करीब ,
मैं अपने एकांत मन में
कुछ ढूंढती अपने लिए ,
जो सिर्फ मेरा हो !
क्या रखा है मेरे लिए ,
कुछ भी तो नहीं !
मेरा तो कुछ है ही नहीं !
सोच दुखी बैठी रही ,
मेरी उलझन देख
मेरे हमराज ने कहा ,
ये सब तुम्हारे बिना
कुछ भी नहीं !
मैंने नयी अनुभूति से देखा ,
मैं , बच्चे , घर सब ही तो
अधूरे हैं तुम्हारे बिना
फिर क्यों ये उलझन ?
मैंने एक क्षण में सब
फिर से बदलते देखा ,
वही पुरानी बातें मुझे
बिलकुल बदली सी लगीं
बदला था मेरा मन !!



Thursday, August 13, 2015

ढूंढती आंखें

खामोश स्तब्ध आंखों में हैं एक सवाल
जवाब ढूंढती आंखें ,
चुभतीं हैं गहरे तक लेकिन 
शब्द नहीं पास ,
कैसे दूं जवाब इन खामोश सवालों का
जिनमे है दर्द का समंदर ?
मेरे पिता कहां हैं ?
आंखों में है गहरा दर्द ,
अपमान का दुःख ,
जीने की चाह ,
मैं कैसे कहूं ? 
मैंने ही तो देखा था सपना 
तुझे अपनी बांहों में भरने का ,
तेरी आंखों से दुनिया देखने का ,
जो होतीं मेरी आंखें देखती मैं  ,
उस नाकामियत भरे चेहरे को ,
जिसने मुझे जीती लाश बनाया ,
आंखें नहीं , जीवन कैसे खोती ?
तब न सोचा इसका जवाब ,
आज धिक्कारता है मन !
तूने क्या किया ? है क्या तेरी खता ?
सुन्दर होना , स्त्री होना या आंखें ना होना ?
आंखें होतीं तो गंदगी दिखती 
है बेहतर कि मैं हूं निर्दोष 
काश , मैं तुझे बता पाती !!
हैं तेरी आंखें मेरा सपना , मेरा सच !!
मेरा अस्तित्व , मेरा जीवन !!

   

सिवा सच्चे प्यार के

दूर आसमान में चमक रहा चांद ,
उठी मन में एक हलचल ,
मन कहीं ढूंढता एक दिलासा ,
भूखा फिरता है मन यहां वहां ,
सब कुछ मिल जाता है ,
सिवा सच्चे प्यार के ,
तरसे मन को कहीं कोई मिल जाता ,
जो झूठा ही सही प्यार तो करता !

हर कुछ मिलते इस जहां में ,
क्यों इंसान इतना रूखा हो चला ,
प्यार तो जैसे दुकानो में बिकता हो ,
सब कुछ है घरों में , 
मन तो उजाड़ हैं प्यार के बिना , 
प्यार सिमट चला है एक और दो में , 
परिवार ही नहीं मन भी सिमट चले हैं !

याद आते हैं अक्सर वो दिन , 
बर्तन खाली हों चाहे ,
मन में था प्यार लबालब भरा 
सीमा बद्ध नहीं ,
असीमित और निष्कपट ,
आज तो हम सीमा में इस हद तक 
बंध चुके कि बातें भी नाप तौल के 
करते हैं, मुस्कान भी सिर्फ 
कोनों से लौट जातीं हैं 
जैसे ज्यादा होने पर 
इनकम टैक्स लग जाए !

बदल चुकीं हैं परिभाषाएं ,  
हम खड़े हैं वहीँ यादों में खोये 
यादों में ही सही सच्चे प्यार 
की झलक तो देती मन को 
तसल्ली और चाह जीने की 
वरना आज तो प्यार भी 
चांद की तरह दूर हो चला है !! 

सच्चे प्यार की कहानी

भर आईं अंखियां देख तेरा प्यार ,
तुझे दूर भेज तरसा था मन कई बार ,
मैंने देखा तुझे सिर्फ प्यार से लेकिन ,
बच्चे का भार उठाये गर्भ में ,
कड़ी धूप की न परवाह ,
चली आई मीलों पार ,
एक नज़र देखने मुझे ,
धन्य है तेरा प्यार , 
इंसान ने तुझे कहा जानवर ,
मैंने दिया नाम "प्यार का मसीहा" 
पशुओं से इंसान सच्चा प्यार ,
सीखें तो इंसानियत कायम रहे !!

ये है मेरी प्यारी सी बकरी 
के सच्चे प्यार की कहानी !   

Thursday, August 6, 2015

गुमराह मन

किस चाह में गुमराह है तेरा मन
न होश किसी उसूल का ,
न ख्याल किसी बात का
इक चाह दौलत की !
दौड़ते दौड़ते थक जायेंगे पांव 
मन फिर भी चाहेगा और ,
इच्छा का अंत न जाना किसी ने
थोड़ी दूर चल और कहे ये मन ,
मन की सुन भागोगे कब तक ?
तेरी सीमा तू ही न जाने 
सुन मन की बात भूल न जाना ,
आखिर में सिर्फ कफ़न ही रहेगा 
हर चाहत से दूर बहुत दूर ,
क्यों ये भागम भाग , क्यों ये लड़ाई ?
क्यों मन में ये झंझावात ?
आखिर तेरी पहचान है क्या ?
क्या किया , कैसे जिया , 
यही रहेगा नाम !
फिर क्यों उठाये फिरे  
दुनिया के तमाम तामझाम ?
क्या है तेरा वो तू ही न जाने ,
क्यों बेवजह इतना परेशान ?
देना लेना ऊपर वाला जाने , 
ये बोझ है किसका हम ये भी न जाने ?
जीवन तो एक सपना है ,
कब हो पूरा , कोई न जाने ? 
जिंदगी थोड़ी चैन से जी लें !!





Tuesday, August 4, 2015

जिंदगी तेरी ये मजाल

जिंदगी तेरी ये मजाल
तू मुझे तरसाये हर दिन 
देखूं मैं तुझे चाहत भरी नज़र से,
भागता फिरूं ढूंढते तुझे 
दर ब दर ठोकरें खाते 
पूछूं तुझसे ये सवाल ,
क्या है मेरी खता और 
क्यूं तू है इतनी जालिम ?
न पता है मां का और न 
ही मेरा , कौन हूं मैं , 
क्या है मेरी पहचान ,
क्या एक नाम ही है पहचान ?
नाम में क्या रखा है ?
दूसरों को लूटने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ?
इंसानियत का नाम  
बदनाम करने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ? 
लोगों को गुमराह करने 
तैयार रहने वालों से 
मैं बेहतर नहीं ?
नही जरूरत एक नाम की 
जो बदनाम हो , गुमनाम हो , 
बेहतर है मेरी अपनी पहचान
मेरी तदबीर हो मेरी पहचान
न किसी से डरूं , न ही लड़ूं 
मेरी पहचान न होगी गुलाम !                                                                        


प्यासा मन

मेरे चेहरे पर आंखें टिका
जाने क्या सोच रही!!
आंखों में चमक नहीं 
होठों पर मुस्कान नहीं 
आंखों में जान नहीं !
मुझे क्यों ये खींचे अपनी ओर 
मुझसे क्या रिश्ता है बनता 
क्यों मुझे एक बंधन खींचे ?
दूर दूर तक कोई नहीं 
ये अकेली खड़ी किसलिए ?
मेरे पांव थम गए , 
आंखें नम हों चलीं 
थामें उसके छोटे हाथ  
खींचा उसको अपने पास 
बैठी रही खामोश 
उसे ज़रा भी न था होश 
कौन है ये जो मुझे बुलाये ?
क्या हुआ मुझे न जाने 
चल पड़ा मैं उठाये 
तेज कदम जैसे कोई 
रोक लेगा मुझे 
घर पहुंचा , देखा उसे  
सूखे होंठ , आंख नम , 
भूखी थी निगाहें, प्यासा मन 
आज मुझे 
भूले बिसरे दिन
याद हो चले जब
मैं निकला था 
किसे खोजने न जाने!
गुम गया इस दुनिया में 
अपनी पहचान बनाने ,
आज इन आंखों में 
खुद को देखा शायद !!
दिल में उमड रहा प्यार 
अपने बचपन को न सही 
इसे संवार लूं शायद !!
मुझे एक बेटी मिली 
दुःख सुख में साझा लेने 
मेरी अपनी दुनिया 
ममता से परिपूर्ण बनी !!


Monday, August 3, 2015

छलकी आंखें

आंखें छलक छलक जातीं हैं
जब भी तेरा प्यार याद आता है ,
छलकती आंखों के आंसूं भी
सूख जाते है इंतज़ार में ,
लेकिन तेरी एक झलक के लिए
मैं तरसता ही रह जाता हूं ,
क्यों ये जिद , क्यों ये दिखावा
जो हर सरहद के पार ,
जाने को तैयार है लेकिन
सरहदें ही नज़र नहीं आतीं ,
सिर्फ हमारी जिद ही अचल
हमारी सहिष्णुता का ,
इम्तेहान लेती है !!
ताज्जुब है कि तू मां है मेरी
और इस हद तक जाने की ,
हिम्मत है तेरी ,
कि मेरी पुकार
तुझ तक नहीं जाती !!
सिर्फ एक छोटी सी
तड़प है दिल में ,
जो सिर्फ तेरे प्यार के सिवा कुछ न जानती , 
क्यों ये दिल इतना नादान है ?
भूल जाता है ये बात कि
हर रिश्ता आज सिर्फ , 
बेजान बोझ सा बन चुका है
फिर कैसे पहुंचेगी 
तेरी आवाज वहां तक ,
जहां सिर्फ प्यार के अलावा , 
सब कुछ है !!
मातृत्व भी एक बोझ सा बन चुका है , 
मां मैंने तुझे समझने की
एक बेहद ही नाकाम कोशिश की ,
तुम जीत गयीं और हार गया मैं , 
मां तुम भी मेरी सहनशीलता का
इम्तेहान न लो , 
मैं तो बिखरा हूं जहां तक
तेरे पांव जाते हैं , 
कोई भी कतरा तेरे पांवों को न दुखाये ,
जो भी हो है तो तू मेरी मां ना !!            




.रिश्तों की सुन्दर दुनिया

दिल ने तो सिर्फ मचलना ही सीखा
लेकिन लोगों ने मचलते दिल को 
तोडना सीखा,
रिश्तों की सुन्दर दुनिया में 
लोगों ने सरे आम ठोकरें देना सीखा 
हमने हर एक रिश्ते को
अकेले में सिसकते देखा 
लेकिन आमने सामने होने पर,
दिखावे की खातिर हंसते  देखा
अक्सर ही मन छटपटाता है ये पूछने
कि कौन है तेरा अपना
और कौन पराया ?
क्यों ये झूठा दिखावा ?
क्यों ये दम तोड़ती सिसकियां ?
जर्रे जर्रे पर लिखे
तेरे नाम को मिटाने के बहाने 
करीब आकर तसल्ली पाती है ,
अगले ही क्षण मन को
छुपाकर तेरा नाम भी 
भूलने का दिखावा करती है
कि कोई तुझे 
गलती से भी बुरा न कहे
और ये नकलीपन 
सिर्फ तुझे सबसे बचाने के लिए,
तू क्या जाने तड़प और प्यार ,
वो तो कब ही दफ़न हो गया 
उसकी रूह भी लेकिन भटकती है 
तेरी यादें दिल में छुपाये 
शायद कभी किसी मोड़ पर
हम फिर मिल जाएँ !!

जिंदगी से सवाल

एक सवाल किया मैंने
जिंदगी तूने मुझे क्या दिया ?
जीवन , परिवार , खुशी ,
बुद्धि , लक्ष्य , सफलता ,
आरोग्य सब तो दिया तुझे ,
और क्या दूं तुझे ?
दे मुझे शोहरत और दौलत !!
शोहरत और दौलत मिली ,
उसी पल मैंने खुद को देखा .
हर चीज़ थी मेरे पास
फिर भी मैं खुश नहीं !!
मेरे अपनों ने मुझे नहीं
दौलत को चाहा
हर दम साथ उम्मीद से
पर सच्चा प्यार नहीं !!
फिर मैंने जिंदगी से पूछा,
मैं गलत था जो मेरा था
वह सच था न चाहूं मैं दौलत ,
दे सिर्फ मुझे शांति
जो न है मेरे पास !!
अब न है मुझे कोई गिला
तूने सच मुझे सब कुछ दिया !!
अब जिंदगी ने पूछा
क्यों इतने हो परेशान
बिना पूछे ही मैं जानूं
तेरी चाह और करूं
तुझ पर हर चीज न्योछावर
बस ज़रा सब्र कर
ले ले जीने का मजा !!
न आएगी हर बात दुबारा
मैं मन ही मन मुस्कुराया !!




एक डर

मेरे अपने हैं मेरे सपने जो
कभी पूरे होने के इंतज़ार में 
दम लेते हैं घुट घुट कर 
मगर जीते हैं। 
दंग हैं दुनिया के बदलते रंग 
देख जो अपनों को भी अपना 
कहने से डरते हैं। 
डर है कि मैं प्यार से 
लूटा न जाऊं ,
डर है कि मैं प्यार से 
बिगड़ न जाऊं ,
डर है कि रिश्ते
मेरे सच्चे न हों जायें ,
डर है कि ममता 
जीत न जाये , 
डर है कि बीवी 
मुझे छोड़ न जाए ,
सारे डर मन में छिपाए 
मैं एक इंसान होने का 
झूठा दम भरता हूं ,
सबसे आंखें मिलाने से भी 
डरता हूं ,
कहीं सच न खुल जाये और 
जाहिर न हो जाए ,
मैं भी तरसता हूं 
प्यार के लिए और 
मेरा दिल भी धड़कता है 
प्यार के लिए ,
सिर्फ एक डर कि 
मैं कमजोर न बन जाऊं। 
मैं खुद को सबसे छुपाये 
हंसते हंसते कभी कभी 
सच ही में रो लेता हूं 
मेरे आंसूं भी मेरी हंसी 
में डर से छिपा लेता हूं 
कोई मुझे शायद कभी 
सही सही समझे 
शायद मेरे भी सपने भी 
कभी सच हों जाएं !!


बदलते रिश्ते

अक्सर ही मैंने रिश्तों को
जीते जी मरते देखा है,
मरने पर लोगों को
बेवजह रोते देखा है।  
जीते जी जो एक दूसरे की
कदर ही नहीं करते , 
उनको भी दिल खोलकर
झूठी बातें कहते देखा है। 
क्यूं लोग इस कदर
झूठ को ओढ़े फिरते हैं,
अक्सर ही अपने दिल में
इस सवाल को घूमते देखा है। 
हमने तो आज तक रिश्तों को
बदलते समय के साथ ,
बदलते बदलते मरते ही देखा है। 
इंसान को भगवान ने
बख्शी एक अमानत , 
लेकिन हमने सरेआम
इस अमानत को लुटते देखा है।
जो सर पर छत और
दो जून खाने को तरसते हैं , 
अक्सर ही उनके
मन में सच्चा प्यार देखा है।  
खुदा तूने क्यों ये दुनिया बनाई , 
सब कुछ होते भी लोगों को
झूठी दुनिया में जीते देखा है।  
रिश्ते जो ख़ुशी का उद्गम होते हैं ,
उनको सरेआम लोगों को
बेनाम करते देखा है। 
हमसे तो बेहतर वो चंद होते है ,
जो कम से कम
रिश्तों का झूठा दम तो नहीं भरते। 
जिन किसी हाथों ने उनको संवारा , 
उन हाथों को जीते जी
वो आबाद करते हैं। 
काश हम सीख पाते रिश्तों को बनाना ,
जिनकी मिठास ने
हमें गुलाम बनते देखा हैं।

बेशकीमती लम्हे

बचपन के वो चंद लम्हे
जो दिल दिमाग भर दें 
मीठी  मीठी यादों से  
मन सपनो और ख़ुशी से।  
जिंदगी मकसद से  
कहां हर किसी को 
नसीब होते हैं ये 
बेशकीमती लम्हे !
जो आंखों से कभी आंसूं 
कभी होठों से ख़ुशी में  
तब्दील होते होते 
अपनी महक से हमें 
अपनी जिंदगी की 
सुंदरता का एहसास 
करा जाते हैं।  
जिंदगी के हर उतार चढाव
और सवालों से हमें
वाकिफ कर जूझने की
हिम्मत और जीतने की
ललक मन में दे जाते हैं।  
बचपन के वो बेशकीमती लम्हे !

प्यारी सी दुनिया

यूं ही बस तकते-तकते आसमान ,
मन कहीं राह भूल जा छिपा,
उन लमहों में , जहां न कोई गम थे 
और न कोई शिकवे  
छोटी-छोटी ख्वाहिशों की
प्यारी सी दुनिया 
न्यारी सी दुनिया जिसमे 
सिर्फ खुशियां ही थीं  
भाई और बहनो की एक पलटन 
सदा तैयार खेलने और झगडने को 
हरदम तत्पर, अपने झगड़ों को
भूलने और खिलखिलाने को 
अब कहां है वो चेहरे और फुर्सत 
सिर्फ मन में है यादों का एक 
पिटारा जिसमे अक्सर ही मन 
ढूंढ लाता है यादों के 
बेशकीमती क्षण और
बरबस ही एक नमीं भी 
जो देती है एक सुखद सी 
अनुभूति एक मीठा सा दर्द 
एक नयी ऊर्जा का संचार 
जिसको शब्द नहीं मन ही 
जानता है ,
एक सुखद अनुभूति
बरबस ही मन को भिगो गयीं
प्यार के छोटे से समंदर की लहरें। 

मुस्कान

एक हल्की सी मुस्कुराहट
और उसमे छुपे कितने ही अर्थ 
जो सिर्फ हम ही जानें,
लेकिन उस एक मुस्कराहट में 
छुपे दर्द शायद ही कोई जानें!!
बचपन से आज तक मैंने 
कभी उस मुस्कराहट में जरा सा भी 
फर्क नहीं देखा,
अक्सर ये सोचूं कि कैसे ये 
मन को चुराने वाली मुस्कान 
हमेशा ही होठों पर है 
विराजमान?
आज जिंदगी के इस मोड़ पर 
जब भी याद करती हूं तो
विस्मय से भर जाता है मन!! 
कितने ही दर्दों को खुद में 
छुपाये सिर्फ हमारे लिए 
सदा ही मुस्कुराती रहतीं थीं,
शायद इसी लिए हमें 
उनकी याद भी आती है,
और कई सीखें भी कि 
जिंदगी के उतार-चढ़ाव 
तो सिर्फ एक मौका है 
खुद की क्षमताओं को 
पहचानने का!!
डटे रहो अपनी मुस्कान से 
औरों का भी हौसला बुलंद कर,  
एक आह्वान देने
वाली इस प्यारी सी मुस्कान 
को अपने वजूद से अलग न कर, 
ताकि हर एक मुश्किल में 
हम तुझे देख अपने को 
सक्षम महसूस का सकें, 
और हर कामयाबी में 
तेरी याद कर खुद 
पर नाज़ कर सके मां!!


मेरी पहचान

आज तक मेरी उलझन ये नहीं
कि कैसे रहूं और क्या करूं ?
जब भी हो कुछ परेशानी
तो हर नज़र टिके मेरे चेहरे पर,
अनजान बनी मैं खामोश रहूं
और रहूं हमेशा ही खामोश!!
आंसूं बहें भी तब, जब न कोई जाने
मेरी उलझन मैं ही न जानूं !!
क्यों मुझे ये शाप मिला
क्यों मुझे अपना प्रतिरूप मिला ?
क्यों मेरा मातृत्व मुझसे छिना ?
क्या मां होना एक शाप है ?
क्या बेटी का जन्म अभिशाप है ?
मुझसे मेरी बेटी को छीन मुझे ही
धमकाया , घर में रहना हो तो
खामोशी ही बेहतर !!
फिर कैसे हमसे इतनी अपेक्षाएं ?
कैसे अभिनय की उम्मीद ?
जब दिल चाहा घर से निकाला
और जब चाहा बुला लिया ?
क्या अस्तित्व है मेरा ?
क्या पहचान है मेरी ?
क्या वजूद है मेरा ?
परिवार , समुदाय , बच्चे ,
कब तक  बनेंगे इस तरह मुजरिम ?
क्या स्त्री होना शाप है ?
सबने मुझसे छोटा सा सवाल किया
क्यों फिर बेटी को जन्म दिया ?
बेटी चाहिए या घर ?
मैं ख़ामोशी में सोच रही हूं
क्या है मेरी पहचान ?
घर या मातृत्व ?



बचपन की धरोहर

आज भी याद आता है
वो मिटटी का घर-आंगन 
बारिश में खेलना ,
आपस में झगड़ना 
और नानाजी की गोद में 
सबसे बचकर छुपना ,
भुलाये नहीं भूलते वो दिन 
नानीमा का बनाया खाना 
जिसका स्वाद कहीं भी न मिला , 
वो निश्छल प्यार जो अब 
कहीं है ही नहीं , 
घर सब बड़े हो गए 
लेकिन मन संकीर्ण हो चले 
रिश्तों में मिठास के ,
सिर्फ पैसों की चमक रह गयी ,
छुट्टियां तो सिर्फ घरों या घूमने में 
सिमट चलीं , 
दूर गए वो दिन जब साथ बैठ ,
दाल भात खाने में अमृत सा स्वाद मिलता , 
आपसी झगड़ों में दुनिया का सबसे , 
अपूर्व सुख मिलता , 
डांट खाने में भी पिज़्ज़ा और बर्गर से 
कहीं ज्यादा मजा आता 
चोरी छिपे धूप में घूमने 
और नज़र बचाकर घर में आने में 
एक अजीब सा सुख मिलता 
जो अब कहीं है ही नहीं  
सिर्फ यादें हैं मन में ,
बीच बीच में एक ,
आंसुओं की धारा बनकर 
आखों से निकल पड़ती है  ,
उसमे भी छुपा मीठा मीठा
दर्द जो सिर्फ धरोहर बन गया है अब !!,  







न जाने क्यूं

न जाने क्यूं मन आज चटका
उदासी की झीनी चादर ओढ़े 
बरबस ही भर आईं आंखें ,
कभी कहीं कही सुनी 
बातों में छुपे शर मन 
विक्षत कर गए गहरे तक ,
एक सवाल भी उठा गए 
हम क्यों ये बोझ जिंदगी भर 
उठाये फिरें ? किसके लिए ?
कौन है अपना? कौन पराया ?
मन ही अपना नहीं फिर 
कैसा शिकवा ? 
छोटी सी दुनिया मन में 
मन भी तो मेरा रहा नहीं !
मन तो सबने तोड़ दिया , 
छीन लिया , विक्षत किया ,
आज भी मन में लेकिन 
है चाहत एक झलक की ,
एक झूठी मुस्कान की , 
एक झूठी उम्मीद की 
शायद सब कुछ बदले
मेरी दुनिया भी बदले 
वीरानी तब्दील हो आबादी में , 
शायद वो दिन यहीं कहीं हो 
मेरे इंतज़ार में !!


   

ज़िन्दगी की दौड़

मैंने फिर बचपन को पास से देखा
उस बचपन को मुस्कुराते देखा
उस मुस्कान में छिपी खुशी पर
खुद को कुर्बान होते देखा !!
बहुत अरसे के बाद आज खुशी को
अपने करीब देख जाना
खुशी कई जमाने बाद
उस मासूम मुस्कान में
हमें देख सकी !!
इस मुस्कान में
वो ताकत है जो
कही नहीं , कहीं नहीं !!
ज़माना गुजरा हमने खुद
का अक्स देखे
क्यों न जाने खुद से थोड़ी
नाराज़गी ,
नाराज़गी में थोड़ा
गम और
गम में थोड़ी
उदासी , इस उदासी ने
हमारा साथ न छोड़ा  ,
हमारा साया बन
हमें कहीं का न छोड़ा ,
वाह , खुशी हम तो
पहली नज़र में ही
तेरे गुलाम हो गए !!
ख़ुशी लेकिन तू है कहां ?
ख़ुशी ने कहा ,
अपने चारों ओर नज़र घुमा ,
हर पल हूं  मैं तुम्हारे पास ,
बहुत ही पास
तुम ही तो मुझे भूल गए ,
अपनी ज़िन्दगी की दौड़ में !!


सच्ची दोस्ती

आज मेरी दोस्त याद आयी
जिसने कभी न कुछ मांगा सिवा 
प्यार और समझ के। 
आज इस रंग बदलती दुनिया में 
कहां मिलते हैं दोस्त 
जो दिल की समझें ,
जाने मुझे ,
न मेरी हैसियत। 
पैसों भरा जेब न देखें 
देखें मेरा मन !
भगवान ने दी और छीन ली
मुझसे मेरी खुशी।
सुख दुःख बांटती एक दोस्त
मुझसे छिन गयी जिसकी
बस यादें ही हैं ,
यादों में ही ढूंढती हूं सुकून
शायद फिर हम मिलें और
बांटें अपने गम और ख़ुशी
मेरे इंतज़ार में वो भी
होगी मुझ सी आतुर
दोस्ती होती ही ऐसी है !!
नसीब होती है जिनको दोस्ती
वाकई वे खुशनसीब होते हैं
सच्ची दोस्ती है जो
हमारे गमों को भुला दे और
दुनिया को हमारे
कदमों में ला दे।
खुशियों की सौगात से
हमारी जिंदगी भर दे ,
न कोई भेद न कोई गम
बस हमारी दुनिया हो
और हमारी दोस्ती।